महाराजा नाहर सिंह (1823-1858) बल्लभगढ़ (वर्तमान हरियाणा) में तंवर (तोमर) वंश के शासक थे और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे।
महाराजा नाहर सिंह का जन्म वर्ष 1823 में हुआ था। वे बल्लभगढ़ रियासत के शासक राजा बहादुर सिंह के उत्तराधिकारी थे। उन्होंने बचपन से ही युद्ध कौशल और प्रशासनिक क्षमताओं को विकसित किया। उनके शासनकाल में बल्लभगढ़ राज्य समृद्ध था जिस वजह से प्रजा में उनकी लोकप्रियता थी।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान :
1857 में जब भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम शुरू हुआ, तो महाराजा नाहर सिंह ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहेब, तात्या टोपे और बहादुर शाह जफर जैसे नेताओं का समर्थन किया।
उन्होंने दिल्ली के मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का साथ दिया और अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। नाहर सिंह ने अपनी सेना के साथ अंग्रेजों पर कई हमले किए और उन्हें बल्लभगढ़ व आसपास के इलाकों में भारी नुकसान पहुंचाया। अंग्रेजों ने उनकी बढ़ती ताकत को देखते हुए उन्हें पकड़ने की साजिश रची।
गिरफ्तारी और बलिदान :
अंग्रेजों ने धोखे से महाराजा नाहर सिंह को पकड़ लिया और दिल्ली के लाल किले में बंदी बना लिया। 9 जनवरी 1858 को उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक में फांसी दे दी गई।
सम्मान :
हरियाणा के फरीदाबाद में उनके नाम पर "महाराजा नाहर सिंह महल" (बल्लभगढ़ किला) स्थित है।
नाहर सिंह क्रिकेट स्टेडियम भी उनके सम्मान में नामित किया गया है।