आज हम एक ऐसे विषय पर बात करेंगे जिसकी जानकारी बहुत कम लोगो को है। हमने सरकारों के द्वारा वेतन की असमानता के बारे में बात करते तो बहुत सुना है पर क्या कभी यह सोचा है कि सरकारी विभागों में ही समान कार्य पर वेतन की असमानता की ज्यादा है ?
छत्तीसगढ़ के उच्च शिक्षा विभाग ने 2024 में एडहॉक प्रोफेसरों के वेतन में वृद्धि को लेकर एक नया ड्राफ्ट प्रस्तुत किया। इस ड्राफ्ट के अनुसार, एडहॉक प्रोफेसरों का वेतन उनके योग्यता स्तर और अनुभव के आधार पर तय किया गया है। परन्तु इस नीति में स्ववित्तीय/जनभागीदारी प्रोफेसरों पर बात ही नही की गई।
ड्राफ्ट के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
1. स्नातकोत्तर (PG) योग्यता वाले प्रोफेसरों का वेतन – 30,000 रुपये प्रतिमाह।
2. नेट/सेट योग्य एवं पीएचडी धारक प्रोफेसरों का वेतन – 50,000 रुपये प्रतिमाह।
स्ववित्तीय/जनभागीदारी प्रोफेसरों का क्या ?
छत्तीसगढ़ में बहुत से ऐसे कॉलेज है जिनमे कई विषय वर्षो सेस्ववित्तीय/जनभागीदारी प्रोफेसरों के भरोसे चल रही है परंतु सरकार का ध्यान इनपर नहीं है। इस वजह से इसी कॉलेज में समान कार्य करने वाले स्ववित्तीय और जनभागीदारी योजना के अंतर्गत नियुक्त प्रोफेसरों के वेतन को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई, जिससे वे अभी भी योग्यता होने के बावजूद 10,000 से 15,000 रुपये प्रतिमाह की न्यूनतम आय पर कार्य करने को मजबूर हैं।
असमानता के प्रभाव :
1. योग्य शिक्षकों का पलायन – जब स्ववित्तीय और जनभागीदारी प्रोफेसरों को इतनी कम सैलरी दी जाती है, तो वे बेहतर अवसरों की तलाश में निजी संस्थानों या अन्य नौकरियों की ओर रुख कर सकते हैं।
2. शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट – कम वेतन के कारण शिक्षक मानसिक रूप से संतुष्ट नहीं होते, जिससे उनके शिक्षण कार्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
3. प्रेरणा की कमी – आर्थिक असुरक्षा के कारण कई शिक्षक अपने करियर को लेकर निराश हो सकते हैं, जिससे उनका शिक्षण प्रभावशाली नहीं रह जाता।
4. नौकरी की अनिश्चितता – स्ववित्तीय और जनभागीदारी प्रोफेसरों को किसी भी समय सेवा समाप्ति की आशंका रहती है, जिससे वे मानसिक दबाव में रहते हैं।
संभावित समाधान :
1. वेतन में संतुलन लाना – सरकार को एडहॉक के समान ही स्ववित्तीय और जनभागीदारी प्रोफेसरों के वेतन में उचित वृद्धि करनी चाहिए।
2. स्थायी नीति बनाना – स्ववित्तीय और जनभागीदारी प्रोफेसरों के लिए भी निश्चित वेतनमान और कार्य की सुरक्षा के लिए नीति बनानी चाहिए।
3. अनुबंध आधारित वेतन वृद्धि – यदि पूर्णकालिक वेतन वृद्धि संभव नहीं हो, तो अनुबंध आधारित वेतन नीति लागू की जा सकती है।
4. अनुदान में वृद्धि – कॉलेजों को मिलने वाली सरकारी सहायता को बढ़ाया जाए, जिससे वे स्ववित्तीय और जनभागीदारी प्रोफेसरों को बेहतर वेतन दे सकें।
छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा को मजबूत करने के लिए सभी शिक्षकों को समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए। यदि एडहॉक प्रोफेसरों के वेतन में वृद्धि की गई है, तो स्ववित्तीय और जनभागीदारी प्रोफेसरों के वेतन पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। सरकार और उच्च शिक्षा विभाग को इस असमानता को दूर करने के लिए त्वरित कदम उठाने चाहिए ताकि सभी शिक्षकों को उनकी मेहनत और योग्यता के अनुसार वेतन मिल सके। क्यों कि यदि शिक्षकों को पर्याप्त वेतन नहीं दिया जाता, तो यह शिक्षा की यह शिक्षा की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। शिक्षकों का मनोबल गिर सकता है, जिससे उनका शिक्षण कौशल प्रभावित हो सकता है।