बावनी इमली क्या है ? इसका इतिहास। Shaheed Sthal Bawan Imlee



बावनी इमली, उत्तरप्रदेश के फतेहपुर में बिंदकी उपविभाग में खजुहा गांव के पास स्थित एक शाहिद स्मारक है जहां 28 अप्रैल, 1858 को, ब्रिटिश सेना ने "इमली" पेड़ पर बावन स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी थी। इस स्थान पर "इमली" पेड़ अभी भी मौजूद है।


इतिहास :

वर्ष 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर जोधा सिंह के आह्वान पर सैकड़ों क्रांतिकारी उनके साथ आ मिले। इस क्रांति में फतेहपुर के डिप्टी कलेक्टर हिकमत उल्ला खां भी शामिल थे, जिन्होंने इस संघर्ष में जोधा सिंह का साथ दिया। संघर्ष के दौरान इन वीरों ने सबसे पहले फतेहपुर के कोषागार और कचहरी पर कब्जा कर लिया। कचहरी पर कब्जे की खबर सुनकर नाना साहेब धोंधू पंत अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने हिकमत उल्ला खां को फतेहपुर का प्रशासक नियुक्त कर दिया।

12 जुलाई 1857 को अंग्रेज मेजर रेनार्ड और हैवलॉक ने हमला कर हिकमत उल्ला खां को गिरफ्तार कर लिया। अंग्रेजों ने उनकी हत्या कर दी और उनका सिर कलम कर फतेहपुर कोतवाली के गेट पर लटका दिया, ताकि कोई और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस न कर सके। 

ब्रिटिश हुकूमत ठाकुर जोधा सिंह और उनके क्रांतिकारी दल से इतनी भयभीत हो गई कि उन्होंने 28 अप्रैल 1858 को खजुहा के पास स्थित एक इमली के पेड़ पर सभी 52 क्रांतिकारियों को फांसी दे दी। इसके साथ ही यह भी ऐलान कर दिया कि अगर किसी ने इन शवों को पेड़ से उतारने की कोशिश की, तो उसे भी फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा।

52 क्रांतिकारियों को इस इमली के पेड़ में फांसी देने की वजह से इस इमली के पेड़ का नाम बावनी इमली पड़ा।