स्वतंत्रता आंदोलन में गणेश चतुर्थी का योगदान



गणेश चतुर्थी का भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण योगदान था, विशेषकर महाराष्ट्र में। वर्ष 1893 में, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी को एक सार्वजनिक त्योहार के रूप में मनाने की पहल की थी। इस पहल से पहले गणेश चतुर्थी मुख्य रूप से एक निजी और पारिवारिक उत्सव उत्सव हुआ करता था।

उन दिनों ब्रिटिश शासन ने सार्वजनिक सभावो पर प्रतिबंध लगाए हुए थे जिस वजह से तिलक ने लोगो को ब्रिटिश शासन के खिलाफ साथ लाने के लिए गणेश चतुर्थी को एक सामूहिक और सार्वजनिक रूप दिया। गणेश चतुर्थी एक ऐसे मंच मंच के रूप में सामने आया जहाँ स्वतंत्रता सेनानी और आम लोग इकट्ठा होते थे, अपने विचारों का आदान-प्रदान करते थे और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते थे।


छत्तीसगढ़ में :

वर्ष 1920 में बीएनसी मिल के मजदूर आंदोलन से राजनांदगांव में भी आजादी की लड़ाई का शंखनाद हो चुका था। बाल गंगाधर तिलक के आह्वान पर राजनांदगांव में बाल समाज गणेशोत्सव समिति का गठन किया और वर्ष 1934 में गणेश की प्रतिमा स्थापित की।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महाराष्ट्र मंडल द्वारा द्वारा 1936 छत्तीसगढ़ गणेश उत्सव मनाने की शुरुआत की गई थी।वर्ष 1938 से गणेशोत्सव का पर्व लगातार मनाया जा रहा है। महाराष्ट्र मंडल के रिकॉर्ड के अनुसार गणपति को लेकर जो कमेटी बनाई गई थी. उस समय सन 1938 में समिति द्वारा गणपति का बजट 100 का बनाया गया था।