जेपीसी (JPC) क्या है ?


संयुक्त संसदीय समिति (JPC - Joint Parliamentary Committee ) एक तदर्थ (अस्थायी) समिति होती है जिसका गठन संसद द्वारा किसी विशेष मुद्दे या रिपोर्ट की जाँच के लिए किया जाता है। इसके गठन के लिए संसद के एक सदन में प्रस्ताव पारित होता है और दूसरे सदन द्वारा उसका समर्थन किया जाता है। JPC के सदस्यों का चयन संसद के द्वारा किया जाता है, जिसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य शामिल होते हैं, लेकिन लोकसभा के सदस्य संख्या में राज्यसभा के दोगुने होते हैं।


JPC किसी भी मामले की जाँच करने के लिए साक्ष्य इकट्ठा करने, दस्तावेज़ों की माँग करने, और संबंधित व्यक्तियों या संस्थाओं से पूछताछ करने के लिए अधिकृत होती है। इसकी कार्यवाही आमतौर पर गोपनीय होती है, सिवाय जनहित के मामलों के। अगर कोई व्यक्ति या संस्था JPC के समक्ष पेश होने से इनकार करता है, तो इसे संसद की अवमानना माना जाता है।

JPC का मुख्य कार्य तथ्यों की निष्पक्षता से जाँच करना और संसद में अपनी रिपोर्ट पेश करना होता है। एक बार रिपोर्ट पेश कर दी जाती है, JPC भंग हो जाती है। जनहित के मामलों को छोड़कर समिति की कार्यवाही और निष्कर्ष को सार्वजनिक नहीं किया जाता है।


संवैधानिक जानकारी:

  • भारतीय संविधान में JPC के गठन का उल्लेख सीधे तौर पर नहीं किया गया है, परंतु यह संसद के नियमों और संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है।
  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 संसद को उसके सदस्यों को कार्यवाही के दौरान स्वतंत्रता देता है, जिसके अंतर्गत समितियाँ भी साक्ष्य एकत्रित कर सकती हैं।
  • संसद की कार्यवाही में जो समितियाँ होती हैं, वे संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत बनाए गए नियमों और कार्यप्रणालियों के आधार पर कार्य करती हैं।


JPC का सदस्य कौन हो सकता है ?

JOC समिति में कुल 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से 20 सदस्य लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा लोकसभा के सदस्यों में से नामित किए जाते हैं तथा 10 सदस्य राज्य सभा के सभापति द्वारा राज्य सभा के सदस्यों में से नामित किए जाते हैं। इस प्रकार के समिति का कार्यकाल एक वर्ष का होता है।


अब तक संसद द्वारा विभिन्न मसलों पर JPC का गठन किया गया हैं : 

  1. बोफोर्स तोप खरीद मामला 1987 : सबसे पहले जेपीसी का गठन वर्ष 1987 में तब हुआ था जब राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप खरीद मामले में घोटाले का आरोप लगा था। स्वीडन के रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इस घोटाले का खुलासा किया। इसमें राजीव गांधी परिवार के नज़दीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची का नाम सामने आया था।
  2. बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता, 1992: पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार पर सुरक्षा मामलों एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता का आरोपो की जांच के लिए jpc का गठन कोय गया था। 
  3. स्टॉक मार्केट घोटाला, 2001 : तीसरी बार 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन किया गया था। 
  4. सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक का मामला, 2003: दिल्ली की एक गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ने कोल्ड ड्रिंक्स में कीटनाशकों के अवशेष पर अध्ययन कर अपनी विश्लेषण रिपोर्ट 5 अगस्त, 2003 को सार्वजनिक की। रिपोर्ट में बताया गया कि दिल्ली में खुले बाज़ार से खरीदे गए शीतल पेयों के 12 ब्रांड्स के नमूनों में कीटनाशक के अवशेष पाए गए।
  5. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, 2011 पाँचवीं बार 2011 में 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जाँच को लेकर जेपीसी का गठन हुआ था। वर्ष 2010 में आई एक CAG रिपोर्ट में 2008 में बाँटे गए स्पेक्ट्रम पर सवाल उठाए गए थे। उसमें बताया गया था कि स्पेक्ट्रम की नीलामी की बजाय ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर इसे बाँटा गया। इससे भारत सरकार को 1,76,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
  6. VVIP चॉपर घोटाला, 2013 : छठी बार 2013 में वीवीआईपी चॉपर घोटाले को लेकर जेपीसी का गठन हुआ। भारतीय वायुसेना के लिये 12 VVIP हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिये एंग्लो इतालवी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ 2010 में किये गए 3,600 करोड़ रुपए के करार को जनवरी 2014 में भारत सरकार ने रद्द कर दिया। इस करार में 160 करोड़ रुपए कमीशन के भुगतान का आरोप लगा था।
  7. वर्ष 2015 में भूमि अधिग्रहण पुनर्वास बिल को लेकर जेपीसी का गठन किया गया। हालाँकि इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका।
  8. वर्ष 2016 में आठवीं बार NRC के मुद्दे को लेकर JPC का गठन हुआ।
  9. व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019
  10. वक्‍फ बोर्ड संशोधन विधेयक, 2024