मगहर राज्य उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर जिले का एक कस्बा और नगर पंचायत है। यह स्थल कबीर पंथियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यों कि संत कबीर की समाधि मगहर में ही स्थित है। संत कबीर ने अपने जीवन के अंतिम दिन मगहर में ही बिताए थे।
संत कबीर अपने जीवन के अंतिम दिनों में मगहर क्यों चले गए ?
प्राचीन काल से यह माना जाता है कि वाराणसी एक मोक्षदायिनी नगरी है, इसके साथ यह भी मान्यता थी कि मगहर एक अपवित्र जगह है और यहां मरने से व्यक्ति अगले जन्म में गधा होता है या फिर नरक में जाता है। मगहर से जुड़े इस मान्यता को तोड़ने के लिए ही जीवन के अंतिम दिनों में संत कबीर मगहर आ गए, और आमी नदी के किनारे रहने लगे। वर्ष 1518 में उन्होंने अपना देह मगहर में ही त्यागा।
मगहर नाम का इतिहास :
मगहर नाम को लेकर भी कई किंवदंतियां हैं। जिनमे से एक किंवदंती के अनुसार, बौद्ध भिक्षु जब कपिलवस्तु, लुंबिनी, कुशीनगर जैसे प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों के दर्शन के लिए जाया करते थे, तब इस इलाके से ही गुजरा करते थे। इस इलाक़े के आस-पास अक़्सर उन दर्शनाभिलाषियों के साथ लूट-पाट की घटनाएं होती थीं और इसीलिए इस रास्ते का ही नाम 'मार्गहर' यानी मार्ग - रास्ता, हर - छिनना पड़ा।
परंतु दूसरी किंवदंती इससे उलट है, इसके अनुसार यहां से गुज़रने वाला व्यक्ति हरि यानी भगवान के पास ही जाता है, इस वजह से इस स्थान का नाम मगहर पड़ा।
देह त्याग :
संत कबीर ने जिस स्थान पर देह त्यागा, उस स्थल पर सुगंधित फूल मिले। जिसे हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों ही धर्मो के लोगो ने आपस में बांट लिया, और मंदिर एवं मजार का निर्माण कराया।