सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिला की संक्षिप्त जानकारी – Sarangarh–Bilaigarh Zila

सारंगढ़–बिलाईगढ़  जिला गठन की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 15 अगस्त, 2021 को की थी। सारंगढ़–बिलाईगढ़ जिले का मातृ जिला रायगढ़ है। जिले का उद्घाटन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 3 सितंबर, 2022 को किया। यह छत्तीसगढ़ का 30 वां जिला है। यह एक प्राकृतिक क्षेत्र है। छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय जी ने सारंगढ़ क्षेत्र के बारे में कहा है "यह अंचल मनुष्य जाति का जन्म-स्थल है तथा मानव जाति की आदि सभ्यता यहीं पली है"। सारंगढ़ छत्तीसगढ़ के 14 रियासतों में से एक थी।


राजनीति :

सारंगढ़ रियासत के गोंड़ राजा नरेशचंद्र सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश के विधायक एवं 13 दिनों (13 से 25 मार्च 1969) के लिए मुख्यमंत्री भी रहे हैं। इन्हीं राज परिवारों ने सारंगढ़ में विजयादशमी के दिन गढ़ विच्छेदन परम्परा की शुरूवात किया गया।


जिले का क्षेत्र :

इस जिले में 4 तहसील सारंगढ़, बरमकेला, बिलाईगढ़ और (नया तहसील) सरिया। उप तहसील कोसीर और भटगांव ।

सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले की जनसंख्या 6 लाख 17252 है।

नगरीय निकाय : सारंगढ़, बरमकेला, सरिया, बिलाईगढ़, भटगांव।

तहसील : 1. सारंगढ़, 2. बरमकेला, 3. बिलाईगढ़, 4. सरिया


सारंगढ़ के नामकरण का इतिहास:

सारंगढ़ गोंड राजाओ का क्षेत्र रहा है। गोंड राजाओं के आने से पूर्व यह क्षेत्र सारंगपुर कहलाता था। कालांतर में यह सारंगपुर सारंगढ़ हो गया। जानते है, कैसे ?

सारंग के अनेक अर्थ है, यहाँ पर इसका अर्थ 'बांस' भी है, और गढ़ का मतलब 'किला'। कहा जाता हैं पहले यहाँ बांस का घना जंगल रहा होगा, इस वजह से इस क्षेत्र का नाम सारंगढ़ पड़ा है। सारंगढ़ नाम का अर्थ है 'बांस का किला'।

अन्य मान्यताएं भी हैं। ऐसा माना जाता है कि, प्राचीनकाल में यह क्षेत्र हिरन का बसेरा रहा होगा। क्यों कि सारंग का एक अन्य अर्थ 'चित्रमृग' अर्थात् हिरण भी होता है। अतः हिरणों की अधिकता की वजह से यह क्षेत्र सारंगढ़ कहा जाने लगा होगा।

साहित्यकार डॉ. विनय कुमार पाठक ने इस क्षेत्र का नामकरण सारंग नामक पक्षी से माना है। सारंग नामक पक्षी की बहुलता के आधार पर इस क्षेत्र का नाम सारंगढ़ हो गया होगा। जो उपयुक्त प्रतीत होता है।


सारंगढ़ का इतिहास :

सारंगढ़ गोंड राजाओ का शासन क्षेत्र रहा है। इतिहासिक रूप से सारंगढ़ रियासत रतनपुर राज्य का हिस्सा था। बाद में अठारह गढ़जाट के एक राज संबलपुर के अधीन रहा जो कि छत्तीसगढ़ का ओडिशा प्रांत की सीमा से सटे तहसील का मुख्यालय है। तत्कालीन मध्यप्रदेश में इस क्षेत्र का विलय 1 जनवरी, 1948 को हुआ। 

सारंगढ़ का इतिहास वर्ष 148 से माना जाता है। राजा नरेन्द्र साय के दो पुत्र वीरभद्र और जगदेव साय ने रतनपुर के राजा नरसिंहदेव के लिए काम किया और कई पड़ोसी राज्यों से युद्घ में सैन्य सेवा में साथ दिया। इससे खुश होकर रतनपुर के राजा नरसिंहदेव ने नरेन्द्रसाय को 84 गांवों का सारंगढ़ परगना दिया गया और दीवान की उपाधि दी। कालांतर में यह सारंगढ़ के जमींदार बने । यहां के राजा कल्याणसाय (वर्ष 1736 से 1777) हुये जिन्हें मराठा शासक ने राजा की पदवी दी । यहां के राजा संग्रामसिंह (वर्ष 1830 से 1872) को अंग्रेजों ने फ्यूडेटरी चीप बनाया।


कुलदेवी :

सारंगढ़ के राजपरिवार की कुलदेवी मां समलाई देवी हैं । जिसकी स्थापना वर्ष 1692 में की गई थी जो आज भी राजमहल गिरि विलास पैलेस में विद्यमान है। 


पर्यटन :

गोमर्डा या गोमर्दा अभ्यारण्य 

सारंगढ़ दशहरा


इन्हें देखें :