छत्तीसगढ़ राज्य सांस्कृतिक रूप से एक सम्पन्न राज्य है। यहां लोग सभी हिन्दू त्योहारों को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ ज्यादातर त्यौहारों को पारंपरिक रूप से ही मनाया जाता है। पारंपरिक रूप से हरसोउल्लास के साथ मनाये जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है नवरात्रि (नवरात) है। छत्तीसगढ़ में देवी के अलग-अलग नामो से उनके अवतारों की पूजा की जेति है, जैसे कि देवी दाई, डोकरी दाई आदि। छत्तीसगढ़ी भाषा में माता को "दाई" कहा जाता है।
यदि आप छत्तीसगढ़ के निवासी हो या आप छत्तीसगढ़ में घूमने आए हो तो आप को छत्तीसगढ़ के नवरात्रि मनाने की परंपरा का दर्शन जरूर करना चाहिए। छत्तीसगढ़ के कुछ पारंपरिक और ऐतिहासिक देवी (माता) मंदिरों की सूची निम्न है जहाँ आप को दर्शन के लिए जाना चाहिए :
बम्लेश्वरी मंदिर (Bambleshwari temple):
यह मंदिर छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है। मान्यतानुसार कामावतीपुरी के राजा वीरसेन ने डोंगरगढ़ की पहाड़ी में महेश्वरी देवी का मंदिर का निर्माण कराया था। यहां बगुलामुखी (बम्लेश्वरी) मंदिर है। डोंगरगढ़ में शारदीय एवं वासंतीय नवरात्री में भव्य मेला आयोजित किया जाता है। पूर्ण पढ़ें
खल्लारी माता (Khallari Mata) :
महासमुन्द जिले में जिला मुख्यालय से 25 किमी दक्षिण की ओर खल्लारी गांव की पहाड़ी के शीर्ष पर खल्लारी माता का मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष क्वांर एवं चैत्र नवरात्र के दौरान बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ दर्शन के लिये आती है। प्रतिवर्ष चैत्र मास की पूर्णिमा के अवसर पर वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। पूर्ण पढ़ें
चंडी मंदिर (Chandi Mandir) :
चंडी माता मंदिर, महासमुन्द से 40 किमी दक्षिण की ओर विकासखण्ड बागबाहरा में घुंचापाली गांव स्थित है। जहां पर चंडी देवी की प्राकृतिक महा प्रतिमा विराजमान है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र एवं क्वांर मास के नवरात्र में मेला लगता है। यहां रोज शाम श्रद्धालुओं के साथ आधा दर्जन भालू भी माता की आरती में शामिल होने पहुंचते है। ये भालू श्रद्धालुओं और गांव वालों के साथ
दंतेश्वरी माता मंदिर (Danteshwari Mata Mandir) :
दंतेश्वरी माता मंदिर दंतेवाड़ा जिले में जगदलपुर शहर से लगभग 84 किलोमीटर दूर डंकिनी-शंखिनी के संगम पर स्थित है। इसे 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि देवी सती की दांत यहां गिरा था, इसलिए दंतेवाड़ा नाम का नाम लिया गया। इस मंदिर का निर्माण काकतीय वंश के शासकों के द्वारा किया गया था। दंतेश्वरी माता बस्तर राज परिवार की यह कुल देवी है। पूर्ण पढ़ें
मड़वारानी मंदिर (Madawarani Temple) :
मड़वारानी मंदिर, छत्तीसगढ ऱाज्य के कोरबा जिले में कोरबा-चाम्पा रोड पर कोरबा से करीब 18 किलोमीटर की दूरी पर एक छोटे पर्वत पर स्थित है। मड़वा का अर्थ मंडप होता है। स्थानीय मान्यतानुसार माँ मड़वारानी यहां स्वयं प्रगट हुई थी। पूर्ण पढ़ें
कोसगाई माता मंदिर ( Kosagai Mata Temple ) :
यह मंदिर फुटका पहाड़ के पहाड़ी इलाकों पर कोरबा-कटघोरा रोड से 25 किलोमीटर की दूरी पर कोसगईगढ़ नाम के एक गांव के पहाड़ी पर स्थित है। यह एक ऐतिहासिक मंदिर है। यहां मंदिर का निर्माण 16 वीं शताब्दी में बहारेन्द्र साय के शासनकाल में हुआ था।
महामाया मंदिर ( Mahamaya Temple):
महामाया मंदिर बिलापुर जिले के रतनपुर में स्थित एक प्राचीन मंदिर है। महामाया मंदिर का निर्माण कलचुरी राजा रत्नदेव प्रथम ने 12-13 सदीं में कराया था। मान्यतानुसार यहां रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंद गिरा था। यह स्थल बिलासपुर से करीब 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
चंद्रहासिनी माता मंदिर ( Chandrahasini Mata Temple ):
यह मंदिर सक्ती जिला के डभरा तहसील में चंद्रपुर में स्थित है। यह काफी प्रशिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख है। देवी की आकृति चंद्रहास अर्थात चन्द्रमा के सामान मुख होने के कारण उन्हें "चंद्रहासिनी देवी" कहा जाता है। चंद्रहासिनी मंदिर से थोड़ी दूरी पर नाथलदाई का मंदिर स्थित है, जो की रायगढ़ जिले की सीमा अंतर्गत आता है। मान्यतानुसार, मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है।
उमा देवी मंदिर ( Uma Devi Temple ) :
कांकेर-नारायणपुर मुख्य मार्ग नरहरपुर ब्लॉक में रिसेवाड़ा गांव में स्थित है। इसका निर्माण 12 वीं शताब्दी में सोमवंश के शासन काल के दौरान किया गया था। यह मंदिर देवी पार्वती को समर्पित है। पूर्ण पढ़ें
माता अंगारमोती (Maa Angarmoti) :
माता अंगारमोती की प्रतिमा धमतरी जिले में दो स्थानों पर स्थापित है। गंगरेल में माता का पैर स्थापित है, वहीं रुद्रीरोड सीताकुंड में माता का धड़ विराजमान है। धड़ तालाब में मछुआरों के जाल में फंसा मिला, मछुआरों ने इसे मामूली पत्थर समझकर वापस तालाब में ही वपर डाल दिया। फिर गांव के ही एक व्यक्ति को माता का स्वप्र आया फिर तालाब से निकालकर पास के ही झाड़ के नीचे स्थापित किया जाए।
माता शबरी का मंदिर (Shabari Temple) :
यदि हम माताओं को याद कर रहें है तो हम उन्हें कैसे भूल सकते है जिंन्हे स्वयं भगवान राम ने माता पुकारा था। माता शबरी को समर्पित यह प्राचीन मंदिर खरौद में स्थित है। माता शबरी को समर्पित यह एकलौता प्राचीन मंदिर है।
माता कौशल्या मंदिर (Mata Kaushalya Temple) :
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 27 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रखुरी गांव में भगवान राम की माता कौशल्या जी का जन्म स्थान माना जाता है। गांव के जलसेन तालाब के बीचोंबीच माता कौशल्या का मंदिर बना हुआ है। मान्यतानुसार मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजाओं ने करवाया था। माता कौशल्या को समर्पित यह इकलौता मंदिर है। पूर्ण पढ़ें
अष्टभुजा माता (Ashtbhuja Mata) :
अष्टभुजा माता मंदिर सक्ती जिले के मालखरौदा तहसील के अड़भार में स्थित है। यह एक ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर है। यह भारत के चुनिंदा दक्षिणमुखी काली मंदिरों में से एक है। पूर्ण पढ़ें
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