अड़भार सक्ती जिला के मालखरौदा तहसील में सक्ती से करीब 11 कि.मी. की दूसरी पर स्थित एक प्राचीन गांव है। यहां विराजित अष्टभुजी माता का मंदिर आस्था का केंद्र है। यहां प्रतिवर्ष नवरात्रि के अवसर पर ज्योति कलश जलाया जाता हैं।
अड़भार स्थित मंदिर के बारे में :
प्राचीन इतिहास में अड़भार का उल्लेख अष्टद्वार के रूप में मिलता है। यहां से पांचवी छठवी शताब्दी के अवशेष प्राप्त हुए है। यह एक वेधशाला भी था।
अष्टभुजी माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने आठ विशाल दरवाजों की वजह से इसका प्राचीन नाम अष्टद्वार पड़ा और धीरे धीरे अपभ्रंश होकर इसका नाम अड़भार हो गया। मंदिर में मां अष्टभुजी की ग्रेनाइट पत्थर की आदमकद मूर्ति इमली के पेड़ के नीचे विराजित है। आठ भुजाओं वाली मां दक्षिणमुखी भी है। सम्पूर्ण भारत में कलकत्ता की दक्षिणमुखी काली माता और अड़भार की दक्षिणमुखी अष्टभुजी देवी के अलावा और कहीं की भी देवी दक्षिणमुखी नहीं है।
अष्टभुजा मूर्ति के ठीक दाहिनी ओर गुन गुरू की प्रतिमा योग मुद्रा में बैठी हुई प्रतीत होती है।
मूर्तियां एवं कलाकृति : अड़भार से अनेक गुप्तकालीन कलाकृति प्राप्त हुई है, जैसे कि महिषासुर मर्दिनी, अष्टभुजी शिव, पार्श्वनाथ, गंगा - यमुना , मिथुन आदि पतिमाएँ।
ताम्रपत्र : पाण्डु वंश के तीवरदेव के उत्तराधिकारी महान्नराज(न्नदेव) का ताम्रपत्र अड़भार से प्राप्त हुआ है।