सन्यासी विद्रोह भारत का पहला ब्रिटिश-विरोधी स्वतंत्रता संग्राम था। यह अविभाजित बंगाल में सनातनी सन्यासिय एवं एवं साधुओं के द्वारा सुरु किया गया एक आंदोलन था। यह आन्दोलन वर्ष 1770 में प्रारम्भ हुआ और 19वीं शताब्दी के दूसरे दशक 1820 तक चलता रहा। संयासी विद्रोह का उल्लेकग प्रशिद्ध उपन्यासकार बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा वर्ष 1882 में रचित उपन्यास "आनन्दमठ" में किया गया है।
सन्यासी विद्रोह के नेता कौन थे ?
विद्रोही संयासी शंकराचार्य के अनुयायी। हिंदू संयासी भबानी चरण पाठक संयासी विद्रोह का नेतृत्व किया। उन्होंने सभी लड़ाइयों का नेतृत्व किया और वर्ष 1791 में गोबिंदगंज की लड़ाई में वे वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी मृत्यु के बाद देवी चौधुरानी के नेतृत्व में, विद्रोह 11 और वर्षों तक 1802 तक जारी रहा।
संन्यासी विद्रोह के कारण क्या थे ?
संयासी विद्रोह का प्रमुख कारण आम हिंदुओं को धार्मिक और वित्तीय आधार पर क्षेत्रीय इस्लामी शासकों और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी दोनों द्वारा सताया जाना था।
विद्रोह के दौरान लड़े गए प्रमुख युद्ध :
वर्ष 1763 सन्यासियों के द्वारा ढाका कारखाने पर कब्जा, वर्ष 1766 में मालदा की लड़ाई, जिसमे कंपनी के दो अधिकारियों की हत्या, वर्ष 1770-1771 में घोड़ाघाट की लड़ाई, जिसमे पूर्णिया में एक किले पर जीत, वर्ष 1784 में ढाका फैक्ट्री पर फिर से कब्जा, और वर्ष 1791 गोबिंदगंज की लड़ाई हुई थी।