प्रतीकात्मक तस्वीर |
आढ़ा-बूढ़ा परंपरा असुर जनजाति के लोगो में है। इस परंपरा के अनुसार इस जनजाति के लोग किसी धार्मिल अनुष्ठान या अपने देवी-देवताओं की पूजा से पहले घर के बुजुर्गों की पूजा कर आशीर्वाद लेते हैं। दीपावली पर भी पारंपरिक पूजा से पहले बड़े-बूढ़ों की पूजा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इस समाज में पुरोहित या बैगा की परंपरा नहीं है। प्रत्येक परिवार के सदस्यों के द्वारा स्वयं ही पूजा की जाती है।
कौन है असुर (Asur) ?
ये जनजाति खुद को असुरराज महिषासुर का वंशज मानते है। यह आदिवासी दहशहरे का पर्व नहीं मनाते है, इस वजह से रावण के दहन या वध की परंपरा नहीं है। आधुनिक असुर
जनजाति को तीन उप-जनजातीय प्रभागों में विभाजित किया गया है, अर्थात् बीर (कोल) असुर, बिरजिया असुर और अगरिया असुर।
विवाह :
असुर जनजाति एक विवाह के नियम का पालन करते हैं, लेकिन बाँझपन, विधुर और विधवा के मामले में, वे द्विविवाह के नियम का पालन करते हैं या यहां तक कि बहुविवाह के साथ-साथ विधवा पुनर्विवाह की अनुमति है।
छत्तीसगढ़ में निवास :
असुर जानजाति छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में जशपुर, सरगुजा और झारखण्ड (Jharkhand) राज्य के छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र में निवास करती है।
भाषा ( Language ) :
असुर जनजाति के लोगो के द्वारा प्रयोग में लाये जाने वाले भाषा को असुर भाषा के नाम से ही जाना जाता है। इस भाषा की कोई लिपि नहीं है, परंतु शब्दावली और लोकगीत के लिहाज से यह बेहद समृद्ध है।
अस्तित्व पर खतरा :
असुर जनजाति की संख्या एक लाख से भी कम बची है, जिस वजह से इस जनजाति की संस्कृति और भाषा दोनों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
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