दंतेश्वरी माता मंदिर - Danteshwari Mata Mandir



दंतेश्वरी माता मंदिर दंतेवाड़ा जिले में जगदलपुर शहर से लगभग 84 किलोमीटर दूर डंकिनी-शंखिनी के संगम पर स्थित है। यह बस्तर क्षेत्र की सबसे सम्मानित देवी को समर्पित मंदिर, 52 शक्ति पिथों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि देवी सती की दांत यहां गिरा था, इसलिए दंतेवाड़ा नाम का नाम लिया गया। दंतेश्वरी माता बस्तर राज परिवार की यह कुल देवी है।

दंतेश्वरी मंदिर में पुजारी क्षत्रिय ( धाकड़ जाति ) के होते है। दंतेश्वरी माता के आरती के समय नफी, बिरकाहली, करना नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है। यहां पुरुष श्रद्धालुओं के लिए धोती पहनना अनिवार्य होता है।


बस्तर दशहरा :

बस्तर दशहरा के 9 वे दिन जोगी उठाई मावली पर घाव की किया जाता है। मावली पर घाव  : अर्थ है देवी की स्थापना। मावली देवी को दंतेश्वरी का ही एक रूप मानते हैं। इस कार्यक्रम के तहत दंतेवाड़ा से श्रद्धापूर्वक दंतेश्वरी की डोली में लाई गई मावली मूर्ति का स्वागत किया जाता है। पूर्ण पढ़ें


मंदिर का इतिहास :

निर्मांण काकतीय शासक अन्न्मदेव ने कराया था। मंदिर का जीर्णोद्धार पहली बार वारंगल से आए पांडव अर्जुन कुल के राजाओं ने करवाया था। वर्ष 1932-33 में दंतेश्वरी मंदिर का दूसरी बार जीर्णोद्धार तत्कालीन बस्तर महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने कराया था। 


मंदिर निर्माण के संबंध में मान्यता :

मान्यतानुसार, काकतीय राजा अन्न्म देव देवी के दर्शन करने यहां आए तब देवी दंतेश्वरी ने उन्हें दर्शन देकर वरदान दिया था कि जहां तक वह जाएगा वहां तक देवी उसके साथ चलेगी और उसका राज्य होगा। इसके साथ ही देवी ने राजा से पीछे मुड़कर न देखने की शर्त भी रखी।

राजा कई दिनों तक बस्तर क्षेत्र में चलता रहा और देवी उसके पीछे जाती रही। जब शंकनी-डंकनी नदी के संगम के पास पहुंचे तो नदी पार करते समय रेत को वजह से राजा को देवी के पायल की आवाज सुनाई नहीं दी। तब राजा पीछे मुड़कर देखा और देवी वहीं ठहर गई। इसके बाद राजा ने वहां मंदिर निर्माण कराया।


मान्यता :

माता सती का एक दांत यहां गिरा था और दंतेश्वरी शक्ति पिठ की स्थापना हुई थी। यहां स्थित नदी के किनारे अष्ट भैरव का आवास माना जाता है, वर्ष 1883 तक यहां नर बलि होती थी।


इन्हे देखें:

मारिया विद्रोह 

बस्तर दशहरा