कोई सरकार पुरानी मुद्रा (Currency) को कानूनी तौर पर बंद कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (Demonetization) कहते हैं। विमुद्रीकरण के बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। हालांकि सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है, ताकि वे अमान्य हो चुके अपने पुराने नोटों को बदल सकें। कई बार सरकार पुराने नोटों को एकदम बंद करने के बजाय धीरे-धीरे बंद कर देती है।
विमुद्रीकरण की आवश्यक क्यों?
सरकारें कालाधन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में संलग्न लोग नोटों को अपने पास ही रखते हैं। विमुद्रीकरण से अवैध गतिविधियों में संलग्न लोग पर सीधे चोट होती है। कई बार नकद लेन देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबंदी की जाती है।
भारत कब-कब हुई नोटबंदी ?
भारत में पहली बार 12 जनवरी, 1946 में 500, 1000 और 10 हजार के नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया था। वर्ष 1970 के दशक में भी प्रत्यक्ष कर की जांच से जुड़ी "वांचू कमेटी" ने विमुद्रीकरण का सुझाव दिया था, लेकिन सुझाव सार्वजनिक हो गया, जिसके चलते नोटबंदी नहीं हो पाई।
जनवरी 1978 में मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार सरकार ने 1000, 5000 और 10 हजार के नोट बंद किया था। हालांकि तत्कालीन आरबीआई गवर्नर आईजी पटेल ने इस विमुद्रीकरण का विरोध किया था।
2005 में मनमोहन सिंह की सरकार ने 500 के 2005 से पहले के नोटों का विमुद्रीकरण कर दिया था।
8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 1000 और 500 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा की अर्थात विमुद्रीकरण की घोषणा की। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने भी सरकार की इस घोषणा का समर्थन किया।