छत्तीसगढ़ राज्य की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या का जीवन यापन के लिए कृषि पर निर्भर है। प्रदेश के 37.46 लाख कृषक परिवारों में से 76 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी में आते है वर्तमान में प्रदेश के सभी सिंचाई स्त्रोतों से लगभग 36 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है, जिसमें से सर्वाधिक 52 प्रतिशत क्षेत्र जलाशयों/नहरों के माध्यम से सिंचित है एवं 29 प्रतिशत क्षेत्र नलकूप से सुनिश्चित सिंचाई के अंतर्गत आते हैं। कृषि अधिकांशतः वर्षा पर निर्भर है प्रदेश की लगभग 55 प्रतिशत काश्त भूमि की जलधारण क्षमता कम होने के कारण, बिना सिंचाई साधन के दूसरी फसल लेना संभव नहीं है।
प्रदेश को सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन की श्रेणी में राष्ट्रीय कृषि कर्मण" प्रथम पुरस्कार राशि रू. 5.00 करोड़ से 5 फरवरी, 2020 को सम्मानित किया गया।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22
वर्ष | वृद्धि % | योगदान % |
---|---|---|
2017-18 | -18.73 | 9.97 |
2018-19 | 14.31 | 10.21 |
2019-20 | 1.28 | 9.88 |
2020-21 | 7.76 | 10.78 |
2021-22 | 3.95 | 10.09 |
धान(चावल) > मक्का > अरहर > मूंग > उड़द > मूंगफली > सोयाबीन > तिल > रामतिल।
प्रमुख रबी फसल
धान (चावल) > मक्का > गेहूं > चना > मटर > तिवड़ा > राई - सरसों > अलसी > गन्ना।
राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा
राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 2014 से राज्य पोषित जैविक खेती मिशन एवं वर्ष 2016 से केन्द्र प्रवर्तित परंपरागत कृषि विकास योजना संचालित है। पूर्व में योजनाओं का क्रियान्वयन 05 जिलों में शुरू किया गया। वर्तमान में इन योजनाओं का विस्तार समस्त जिलों में करते हुए 05 जिले गरियाबंद, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा एवं नारायणपुर को पूर्ण जैविक जिला एवं शेष 22 जिलों के एक-एक विकासखंड को पूर्ण जैविक बनाने हेतु कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। जैविक खेती मिशन अंतर्गत वर्ष 2019 20 में 10,990 एकड़ एवं परंपरागत कृषि विकास योजना में 50,000 एकड़ में फसल प्रदर्शन का आयोजन किया गया वर्ष 2020-21 में जैविक खेती मिशन का 7.290 एकड़ में तथा परम्परागत कृषि विकास योजना का 50,000 एकड़ में क्रियान्वयन कर कुल 57.290 एकड़ क्षेत्र में जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जैविक फसलें- राज्य में धान की सुगंधित किस्में बासमती, बादशाह भोग, दुबराज, पुसा सुगंध, जवाफूल, मोतीचुर, जीराफूल, तुलसी-मंजरी, काली कमोद, लोक्टीमांछी, कालीगिलास, तिलकरतुरी (Green Rice), मक्का एवं लघु धान्य फसलें-कोदो-कुटकी, रागी, सांया, कोसरा आदि एवं दलहन-तिलहन फसलें अरहर, उड़द, मूंग, कुल्थी, तिल की जैविक खेती की जा रही है।
गोधन न्याय योजना
"सुराजी गांव योजना" के माध्यम से नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी संरक्षण एवं संवर्धन का अभियान प्रारंभ किया है सांस्कृतिक परंपरा से परिपूर्ण इस कार्यक्रम को सरकार ने अपनाते हुए इसको एक अभियान के रूप में लिया है।
प्रदेश सरकार द्वारा वर्ष 2020-21 में हरेली के दिन 20.07.2020 को "गोधन न्याय योजना" का शुभारंभ किया गया। इसके अंतर्गत सुराजी गांव में स्थापित गौठानों के माध्यम से गौठान समितियों द्वारा रू. 2 प्रति किलो की दर से अद्यतन 28.52 लाख क्विंटल गोवर 1.35 लाख पशुपालकों से क्रय कर गौठान स्व-सहायता समूहों द्वारा 5,888 क्विटल वर्मी खाद का उत्पादन किया जा चुका है एवं सहकारी समितियों के माध्यम से 1,540 किंजल वर्मी खाद रू.8 प्रति किलो की दर से किसानों को विक्रय किया जा चुका है।
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