खड़िया जनजाति छत्तीसगढ़ के रायगढ़ एवं सरगुजा क्षेत्र में निवास करती है। खड़िया जनजाति के लोग पुस्पुन्नी व करमा पर्व मनाते है। खड़िया जनजाति की मातृभाषा खड़िया है, इनके प्रमुख देवता बन्दा देव है। खड़िया जनजाति पालकी ढोने का कार्य करती है।
खड़िया जनजाति छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड राज्यों के छोटा नागपुर इलाके में रहने वाले पहाड़ी लोगों के कई समूहों में से एक है।
खड़िया लोग तीन वर्गों के होते हैं :-
- दूध खड़िया
- ढेलकी खड़िया
- पहाड़ी खड़िया
पहाड़ी खड़िया सब से निम्न श्रेणी के समझे जाते हैं। छोटानागपुर की अन्य जातियों के समान इनमें भी गोत्र- प्रथा जाती है। पहाड़ी खरिया उड़ीसा राज्य के सिमलीपाल क्षेत्र के दूरस्थ इलाकों में छोटे समूहों में रहते हैं।
दूसरे खड़िया लोग गोत्र की नीति-रीति रखते हैं। सगोत्र खड़ियाओं का ख्याल है कि हम सब एक ही पुरूष- पुरखे के वंशज हैं| कि हम भाई-बहन हो एक वृहत घराने अंग-अंग है। इस स्थिति में वैवाहिक नाता जोड़ा नहीं जा सकता।
ढेलकी खड़िया के गोत्र आठ हैं:
1. मुरू- कछुआ 2. सोरेन (सोरेंग, सेरेंग) या तोरेंग- पत्थर या चट्टान; 3. समाद- एक हरिण, अथवा बागे- बटेर 4. बरलिहा- एक फल; 5. चारहाद या चारहा - एक चिड़िया; 6. हंसदा या डूंगडूंग या आईंद – एक लंबी मछली 7. मैल – मैल अथवा किरो- बाघ 8. तोपनो- एक चिड़िया।
मुरू और समाद सब से श्रेष्ठ। मुरू खानदान का पुरूष ही खानपान में पहला कौर खा सकता है।
दूध खड़िया के नव गोत्र मानते हैं:
1. डूंगडूंग - एक लंबी मछली 2. कुलु- कछूवा 3. समाद अथवा केरकेट्टा- एक पक्षी 4. बिलूंग- निमक 5. सोरेंग- चट्टान 6. बा- धान 7. टेटेहोंए – एक पक्षी 8. टोपो से निकले हैं।