वर्ष 1320 को खुसरो को पराजित करके गाजी तुगलक ने गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली में तुगलक वंश की स्थापना की।
- गयासुद्दीन तुग़लक़ (1320-24ई.)
- मुहम्मद तुगलक (1324-51 ई.)
- फिरोज शाह तुगलक (1351-88 ई.)
- मोहम्मद खान (1388 ई.)
- गयासुद्दीन तुग़लक़ शाह II (1388 ई.)
- अबू बकर (1389-90 ई.)
- नसीरूदीन मुहम्मद (1390-94 ई.)
- हुमायूँ (1394-95 ई.)
- नसीरूदीन महमूद (1395-1412 ई.)
गयासुद्दीन तुग़लक़ (1320-24ई.)
29 बार मंगोलो को पराजित किया तथा गाजी उल मलिक की उपाधि धारण की।
गयासुद्दीन के काल में वर्ष 1323 में पुत्र जौना खाँ ( मुहम्मद बिन तुगलक ) ने वारंगल पर असफल आक्रमण किया। वर्ष 1324 में जौना खाँ ने वारंगल पर पुनः आक्रमण किया और वारंगल जीतकर इसका नाम तेलंगाना / सुल्तानपुर रखा।
गयासुद्दीन तुगलक का अंतिम सैन्य अभियान बंगाल की गङबङी में अपने पुत्र बुगरा खाँ (नसीरूद्दीन बुगरा खान) के फिलाफ किया। क्यों कि बलबन के बुगरा खाँ ने बंगाल को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया था।
बंगाल से वापस लौट रहे थे तब निजामुद्दीन औलिया ने कहा - अभी दिल्ली दूर है।
वर्ष 1325 में बंगाल अभियान से लौटने समय तुगलकाबाद में विश्राम के लिये बनाये गये लकड़ी के महल में दब कर गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यू हो गयी।
प्रशासन :
लगान के रूप में उपज का 1/10 या 1/12 हिस्सा
गयासुद्दीन ने अपनी आर्थिक नीति का आधार संयम, सख्ती और नरमी का संतुलन बनाया, जिसे रस्म-ए-मियान अर्थात 'मध्यपंथी नीति कहा गया।
सिंचाई के लिए कुओं एवं नहरों का निर्माण करवाया। सम्भवत: नहर का निर्माण करवाने वाला वह प्रथम मुस्लिम सुल्तान था।
मोहम्मद बिन तुगलक
वर्ष 1325 में गयासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यू के बाद जूना खाँ ने मोहम्मद बिन तुगलक नाम के साथ दिल्ली की सत्ता अपने हाथ में ली।
वर्ष 1326-27 में दोआब के क्षेत्र में कर वृद्धि की गयी, परन्तु अकाल की वजह से यह असफल रहा।
वर्ष 1326-27 में ही देवगिरि का नाम "दौलताबाद" कर राजधानी बनायी गयी। परन्तु यह योजना भी असफल रही।
वर्ष 1329-30 में मगोलो से प्रभावीत हो कर सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन किया गया। परंतु यह योजना भी असफल रहा।
कृषि सुधार: दिवान-ए-अमीर, कोही की नियुक्ति की गयी और बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिये फार्म कृषि योजना।
खुरासान एवं कराजील अभियान की योजना बनाई गयी। परन्तु शासको से मित्रता होने की वजह से योजना असफल।
ईब्नबतूता:
वर्ष 1333 में मोहम्मद बिन तुगलक के शासन काम मे भारत आये। इनको दिल्ली का काजी नीयुक्त किया गया और राजदूत के रूप में चीन भेजा गया।
स्वतंत्र राज्यो की स्थापना:
हरिहर व बुक्का नामक दो भाईयो ने वर्ष 1336 में विजनगर की स्थापना की।
अलाउद्दीन बहमन शाह के द्वारा 1347 में बहमनी राज्य की स्थापना की गयी।
वर्ष 1351 में सिन्ध के विरोध को दबाने के लिये सिन्ध गये। यहाँ तबियत बिगड़ने की वजह से इनकी मृत्यू हो गयी।
फिरोज शाह तुगलक
मोहम्मद बिन तुगलक की मृत्यू के बाद उनका चचेरा भाई फिरोज शाह तुगलक वर्ष 1351 को दिल्ली का शासक बना।
इसने पूरे देश में करीब 300 नए शहरों की स्थापना की थी। हरियाणा का हिसार व फतेहाबाद, उत्तरप्रदेश का फिरोजाबाद शहर और जौनपुर व पंजाब का फिरोजपुर बसाया था।
वर्ष 1360 में सुल्तान फिरोजशाह ने उड़ीसा के जाजनगर पर हमला करके वहाँ के शासक भानुदेव तृतीय को परास्त कर पुरी के जगन्नाथपुरी मंदिर को ध्वस्त किया था।
वर्ष 1382 में सूबेदार मलिक अहमद ने खानदेश की स्थापना की।
तुगलक वंश का पतन
फिरोज शाह तुगलक की मृत्यू के बाद साम्राज्य के पतन की सुरुवात हो गयी। अयोग्य शासको की वजह से विशाल साम्राज्य को सम्हाल पाना मुस्किल था।
फिरोज तुगलक के काल में धार्मिक असहिष्णुता की नीति चरम सीमा पर पहुँचा दी थी। हिन्दुओं से कठोरतापूर्वक 'जजिया' (धार्मिक कर) वसूल किया जाता था। उनके अनेक मन्दिर तोड़ दिए गए।
वर्ष 1398 ई. में समरकन्द के शासक तैमूर लंग ने दिल्ली पर आक्रमण किया। इस आक्रमण में तुगलक वंश का अन्तिम शासक नासिरुद्दीन महमूद बुरी तरह पराजित हुआ और तैमूर ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। 1413 ई. में नासिरुद्दीन महमूद की मृत्यु के साथ ही तुगलक वंश का पतन हो गया।
तैमूर लंग, पश्चिमी भारत को खीज खां को सौप कर समरकंद लौट गया। खीज खां ने दिल्ली में सैयद वंश की स्थापना की।
दिल्ली सल्तनत के 5 वंश :