खिलजी वंश का संस्थापक जलालुद्दीन खिलजी ने गुलाम वंश के अन्तिम शासक कैकुबाद और क्युमर्स की हत्या कर के की थी। इन्हे ख़लजी भी कहा जाता है, क्यो की ये अफगानिस्तान के खल्ज नामक स्थान से थे। परन्तु, ये भी मूलतः तुर्की थे। इन्होने अपनी राजधानी किलाखरी को बनाया था।
खिलजी वंश के शासको के नाम :
- जलालुद्दीन खिलजी ( 1290-1298 ई.)
- अलाउद्दीन खिलजी ( 1296-1316 ई. )
- कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी (1316-1320 ई. )
- नासिरुद्दीन खुसरो शाह ( 1320 ई. )
जलालुद्दीन खिलजी
जलालुद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम फिरोज था। वह खिलजी शासक बनने से पहले आरिज-ए-मुमालिक ( सैन्य विभाग का प्रमुख ) था।
वह 70 वर्ष की आयु में कैकुबाद द्वारा निर्मित किलोखरी महल ( दिल्ली ) में राज्याभिषेक कराया और सबसे वृद्ध शासक बना।
जलालुद्दीन खिलजी के काल मंगोल आक्रमण हुआ परन्तु उन्हे अलउद्दीन खिलजी ने परास्त कर दिया। युद्ध के बाद चंगेज खाँ के नाती उलूग खाँ ने अपने 4,000 मंगोल समर्थको के साथ इस्लाम धर्म ग्रहण किया।
इनके शासन काल में मंगोल दिल्ली मे बसे जिन्हें नवीन मुसलमान कहा गयाफिरोज खिलजी ने अपनी पुत्री की शादी उलूग खाँ से कर दी तथा नवीन मुसलमानो के रहने के लिए मुगलपुर नामक बस्ती बसाई।
वर्ष 1292 में अलाउद्दीन खिलजी ने भिलसा व वर्ष 1296 में देवगिरि का अभियान किया।
वर्ष 1296 में मानिकपुर में अलाउद्दीन खिलजी मे अपने भाई अलमस की सहायता से जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर दिल्ली का शासक बन गया।
अलाउद्दीन खिलजी
अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला।
अलाउद्दीन का राज्याभिषेक बलबन द्वारा निर्मित लाल महल मे किया गया।
सर्वाधिक मंगोल आक्रमण अलाउद्दीन के कार्यकाल में हुये। मंगोल आक्रमण से निपटने के लिये दिल्ली के निकट "सीरी" को राजधानी बनायी गयी थी।
सैन्य अभियान :
पहला शासक था जिसके पास स्थाई सेना थी। हुलिया एवं दाग प्रथा की सुरुवात की, सैनिको के लिये "हुलिया" एवं उच्च किस्म के घोड़ो को "दाग" दिया जाता था।
खिलजी ने 1299 में गुजरात पर आक्रमण के लिए उलूग खान को जिम्मेदारी सौपी। वाघेला राजा कर्ण उस समय गुजरात के शासक थे; खिलजी की सेना ने उसे हरा दिया और सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया। खिलजी ने हिंदुओं का नरसंहार करने और मंदिरों से धन लूटने का आदेश दिया था।
अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1300 के दौरान रणथम्भोर के किले पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में विफल रहे। तीन असफल प्रयासों के बाद, उनकी सेना ने अंततः जुलाई 1301 में रणथंभौर किले पर कब्जा कर लिया था।
वर्ष 1305 में मालवा का अभियान किया। यहाँ का शासक महलदेव था जो मंत्री कोका प्रधान की सहायता से शासन करता था।
खिलजी वंश का पतन
अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद उसके सेनापति मलिक काफूर ने अलाउद्दीन के सबसे छोटे बेटे शिहाबुद्दीन उमर खिलजी 6 वर्ष की उम्र में शासक बना दिया, परन्तु सत्ता की सारी बागडोर मलिक काफूर के हाथ में ही थी।
मलिक काफूर ने अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद उसकी विधवा पत्नी से शादी कर ली और बाद में उसके दो पुत्रों को अंधा कर के उसकी मां मल्लिका-ए-जहां के साथ ग्वालियर के किले में कैद करवा दिया। मलिक काफूर ने अलाउद्दीन ने एक और बेटे कुतुबुद्दीन मुबारक खिलजी को राजधानी सीरी के किले में कैद करवा दिया।
मुबारक खिलजी ने कैद में रहते हुए ही मलिक काफूर की हत्या करवा दी और अपने ही छोटे भाई शिहाबुद्दीन उमर खिलजी को अंधा बना कर कैद करवा दिया।
इसके बाद मुबारक खिलजी ने 1316 से लेकर 1320 ई. तक सफलतापूर्वक राज किया। मुबारक खिलजी अब मुबारक खां के नाम से जाना जाने लगा।
सत्ता हासिल होते ही मुबारक खां ने अलाउद्दीन खिलजी के कई नियमों को हटाकर राज्य में अपने नियम लागू किए।
मुबारक खां के वजीर (प्रधानमंत्री) खुसरो खां (नासिरुद्दीन खुसरोशाह) ने 1320 में उसकी हत्या कर खिलजी वंश का अंत कर दिया।
खुसरो खां दिन 12 दिन ही शासन कर सका। तुगलक वंश के प्रथम शासक गयासुद्दीन तुगलक ने उसकी हत्या कर दी और तुगलक वंश की स्थापना की।
दिल्ली सल्तनत के 5 वंश :