उत्पत्ति:
भारिया जनजाति की उत्पत्ति के संबंध यह मान्यता है कि जब पांडवो को वनवास हुआ था तब पांडव अपनी कुटिया का निर्माण भारू नामक घास से करते थे , पांडव पांच भाई थे कौरव सैकड़ो भाई थे। इसलिए महाभारत युद्ध में पाँच पाण्डवों द्वारा सैकड़ो कौरवों को पराजित करना मुश्किल था। तब अर्जुन ने भारू नामक घास को हाथों में लेकर उसकी मानव मूर्ति बनाया एवं उसे मंत्र - शक्ति द्वारा जीवित किया जिन्होंने कौरवों से युद्धकर उन्हें परास्त किया। यह मानव ही भारिया कहलाए।
मूल स्थान एवं छत्तीसगढ़ आगमन:
भारिया जनजाति अपना मूल निवास स्थान बांधवगढ़ को मानते हैं। बांधवगढ़ के महाराजा कर्णदेव भारिया वंश के थे। वर्ष 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने राजा संग्रामसाय को जबलपुर में फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसके बाद भारिया लोगो पर अंग्रेजो की प्रताड़ना बड़ गई। महाराजा संग्रामसाय की मृत्यु के पश्चात् भारियाजन अपने आप को निराधर पाकर कुछ भारियाजन विंध्य पर्वत होते हुए सिवनी , नरसिंहपुर , जबलपुर , छिंदवाड़ा के आसपास के घने जंगलों में बस गए एवं कुछ भारियाजन शहडोल , पेंड्रा व छुरी - कोरबा के आसपास के घने जंगलों में बस गए।