प्लासी का युद्ध - Battle of Plasi


प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 को मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे 'प्लासी' नामक स्थान पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और बंगाल के नवाब की सेना के बिच हुआ था। कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में नवाब सिराज़ुद्दौला को हरा दिया था। इस युद्ध से ही बंगाल में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव डाली और भारत में अंग्रेज शासन की सुरुवात हुई।

प्लासी के युद्ध का कारण
10 अप्रैल, 1756 को अलीवर्दी खाँ के मृत्यू के बाद उसका पौत्र मिर्जा मोहम्मद सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना। पूर्णिया का नवाब शौकतजंग तथा ढाका की गवर्नर घसीटी बेगम दोनों ही सिराजुद्दौला के प्रबल विरोधी थे। अंग्रेजों ने इस स्थिति का लाभ उठाना चाहा।

अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के विरोधियों राजवल्लभ तथा उसके पुत्र कृष्णवल्लभ को कलकत्ता में शरण थी। जब सिराजुद्दौला ने इन्हें वापस मांगा तो अंग्रेजों ने स्पष्ट इंकार कर दिया। इसे नवाब ने अपना अपमान समझा।

मुगल सम्राट फर्रुखसीयर ने 1717 में अंग्रेजों को बिना चुंगी दिये व्यापार की सुविधा प्रदान कर दी थी। अंग्रेजों ने इस सुविधा का दुरुपयोग किया। उन्होंने भारतीय व्यापारियों को अपने "फ्री पास" देकर उनका भी चुंगीकर बचाना प्रारम्भ कर दिया। इसके एवज में वह कुछ धन भारतीय व्यापारियों से ले लेते थे। इससे राज्य की आय को बहुत हानि होती थी, जिसका सिराजुद्दौला ने विरोध किया।

कासिम बाजार पर आक्रमण :
आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध की आशंका के चलते अंग्रेज तथा फ्रांसीसी दोनों सिराजुद्दौला की अनुमति के बिना अपने दुर्गों का निर्माण कर रहे थे। इस बात का समाचार जब सिराजुद्दौला को मिला तो उसने ऐसा न करने का आदेश दिया। फ्रांसीसियों ने आदेश का पालन किया किन्तु अंग्रेजों ने आदेश का पालन नहीं किया। फलस्वरूप नवाब ने 4 जून 1756 को कासिम बाजार पर आक्रमण कर दिया। अंग्रेजों ने आत्म समर्पण कर दिया।

कलकत्ता पर आक्रमण :
कासिम बाज़ार पर सफल हमले के पश्चात सिराजुद्दौला ने 15 जून, 1756 को कलकत्ता पर आक्रमण कर फोर्ट विलियम को घेर लिया। नवाब की विशाल सेना देख कर गवर्नर रॉजर ड्रेक तथा सेनापति मिंचन फुल्टा एवं अन्य प्रमुख लोग भाग गये। हालवैल के नेतृत्व में अंग्रेज सेना ने नवाब की सेना का सामना किया किन्तु अंग्रेज पराजित हुए। 20 जून 1756 को नवाब से फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया। नवाब ने कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर रख दिया। तथा अलीनगर (कलकत्ता) को मानिक चन्द के हाथ देकर स्वयं मुर्शिदाबाद लौट गया।

ब्लैक होल ( कालकोठरी ) की घटना :
कलकत्ता के युद्ध में बन्दी बने अंग्रेजों जिसमें बच्चे तथा महिलाएं भी शामिल थी, लगभग 146 बन्दियों को 18 फीट लम्बे और 14 फीट 10 इंच चौड़े एक कक्ष में बंद कर दिया गया। कहा जाता है कि 20 जून 1756 की रात ये बन्द किये गए अगली सुबह के 23 लोग ही बच पाये। अंग्रेजों ने इस घटना का जिम्मेदार सिराजुद्दौला को माना। इस दुर्घटना को कालकोठरी दुर्घटना के नाम से भी जाना जाता है।

अलीनगर की सन्धि : पुर्ण पढ़ें
कलकत्ता के पतन का समाचार जब मद्रास पहुँचा तो अंग्रेजों ने एक सेना जो उन्होंने फ्रांसीसियों के विरुद्ध गठित की थी, क्लाइव के नेतृत्व में कलकत्ता भेजी। इस सेना में नौ सेना का नेतृत्व एडमिरल वाटसन तथा पैदल सेना का नेतृत्व क्लाइव कर रहा था। यह सेना 16 अक्टूबर की मद्रास से चली तथा 14 दिसम्बर को बंगाल पहुँची। नवाब के प्रभारी अधिकारी मानिक चन्द ने घुस लेकर कलकत्ता अंग्रेजों को सौंप दिया। इस प्रकार 2 जनवरी 1757 को कलकत्ता पुनः अंग्रेजों के अधिकार में आ गया।
क्लाइव और नवाब के बीच 9 फरवरी 1757 को "अलीनगर की सन्धि" हुई। इस सन्धि से अंग्रेजों के व्यापार करने के पुराने अधिकार वापस मिल गये। कलकत्ता में अंग्रेजों को किलेबन्दी करने की अनुमति मिल गयी तथा अंग्रजों को अपने सिक्के ढालने का भी अधिकार दिया गया। इसके अतिरिक्त नवाब ने क्षतिपूर्ति के लिए 3 लाख रुपये अंग्रेजों को दिये। क्लाइव ने नवाब के विश्वासघाती सहयोगियों से मिलकर नवाब को हटाना चाहा।

अंग्रेजों का चन्द्रनगर पर अधिकार
क्लाइव 23 मार्च 1757 को चन्द्रनगर बस्ती पर आक्रमण कर फ्रांसीसियों से छीन लिया। इस पर नवाब बहुत क्रोधित हुआ। इस प्रकार उपर्युक्त सभी कारण की परिणति प्लासी के युद्ध के रूप में हुई।

सिराजुद्दौला की हत्या
प्लासी की लड़ाई से नवाब सिराजुद्दौला भाग निकले लेकीन उन्हे पटना में मीर जाफर के सिपाहियों ने पकड़ लिया। उन्हें पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के हवेली लागबाग लाया गया। इस हवेली को "नमक हराम ड्योढ़ी" के नाम से भी जाना जाता है। मीर जाफर के बेटे मीर मीरन ने उन्हें जान से मारने का हुक्म दिया। 2 जुलाई, 1757 को उन्हें इसी नमक हराम ड्योढ़ी में फांसी पर लटकाया गया। अगली सुबह, नवाब की लाश को हाथी पर चढ़ाकर पूरे मुर्शिदाबाद शहर में घुमाया गया।


प्लासी के युद्ध का परिणाम
युद्ध से पूर्व ही नवाब के तीन सेनानायक, उसके दरबारी, तथा राज्य के अमीर सेठ जगत सेठ आदि से कलाइव ने षडंयत्र कर लिया था। सिराजुद्दौला को बन्दी बना लिया गया तथा उसकी हत्या कर दी गई। मीर जाफर मुर्शिदाबाद लौट गया तथा स्वयं को नवाब घोषित कर लिया।

नवाब बनने के बाद मीर जाफर ने सन्धि के अनुसार, अंग्रेजों को 24 परगनों की जमीदारी प्रदान की, ढाका तथा कासिमबाजार में दुर्ग निर्माण का अधिकार दिया, कलकत्ता को पूर्णतया अंग्रेजों के आधीन कर दिया, क्लाइव को 234000 पाउंड की निजी भेंट दी। तथा अंग्रेज सैनिकों को 50 लाख रुपया पुरस्कार स्वरूप दिये। इसके अतिरिक्त बंगाल में सभी प्रकार की व्यापारिक सुविधाएं अंग्रेजों को देने का वचन दिया।


इन्हे भी देखें 
अलीनगर की सन्धि