श्रीमती डॉ. राधाबाई - Dr. Radhabai


श्रीमती डॉ. राधाबाई स्वतंत्रता सेनानी तथा समाज सुधारक थी। डॉ. राधाबाई रायपुर नगर ( छत्तीसगढ़ ) की प्रथम महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के रुप में जाना जाता है। इन्होने छत्तीसगढ़ की अनेक महिलाओ को प्रेरित किया। 2 जनवरी, 1950 को इनकी मृत्यू हो गई।

जीवन
श्रीमती राधाबाई का जन्म नागपुर, महाराष्ट्र में वर्ष 1875 में हुआ था। बहुत कम आयु में ही विवाह हो गया था। जब वे मात्र नौं वर्ष की ही थीं, तभी विधवा हो गईं। वर्ष 1918 में राधाबाई रायपुर आईं और दाई का काम करने लगीं। प्रेम और लगन से वे अपना काम करने के कारण जन उपाधि के रूप में राधाबाई डॉ. कहलाने लगी थीं।


स्वतंत्रता आन्दोलन एवं समाज सुधार
डाॅ. श्रीमती राधाबाई वर्ष 1930 से 1942 तक सत्याग्रह में भाग लेती रहीं। वर्ष 1920 में गाँधीजी जब पहली बार रायपुर आये, तो राधाबाई को पथ-प्रदर्शक मिले।
उन्होने वेश्यावृत्ति में लगी लड़कियो मुक्ति दिलाई। समाज में प्रचलित कई कुप्रथाओं को समाप्त करने में भी राधाबाई का योगदान है।

वेश्यावृत्ति से मुक्ति:
छत्तीसगढ़ी भाषा में "किसबिन नाचा" कहते थे - जिसमें गाँवों और शहरों में सामंतों के यहाँ वेश्याओं का नाच हुआ करता था। छत्तीसगढ़ में "किसबिन नाचा" करने वालों की अलग एक जाति ही बन गई थी। ये लोग अपने ही परिवार की कुँवारी लड़कियों को किसबिन नाचा के लिये अर्पित करने लगे थे। डॉ. राधा बाई के साथ सभी ने इस प्रथा का विरोध किया और इस प्रथा को खत्म किया। यह प्रथा सर्वप्रथम खरोरा नाम के एक गाँव में समप्त हुआ, और लोग को खेती बाड़ी के लोए प्रेरित किया।