कौन थे दादा साहब/साहेब फाल्के?
दादा साहेब फाल्के जी का पूरा नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के (Dhundiraj Govind Phalke) था। उनका जन्म 30 अप्रैल,1870 को एक मराठी परिवार में हुआ था। उन्होंने नासिक से पढ़ाई की। उन्होंने सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई में नाटक और फोटोग्राफी की ट्रेनिंग ली थी। उन्होंने जर्मनी जाकर फिल्म बनाने की शिक्षा हासिल की। इसके बाद भारत वापस आकर उन्होंने फिल्में बनानी शुरू की।
दादा साहेब फाल्के जी का पूरा नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के (Dhundiraj Govind Phalke) था। उनका जन्म 30 अप्रैल,1870 को एक मराठी परिवार में हुआ था। उन्होंने नासिक से पढ़ाई की। उन्होंने सर जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई में नाटक और फोटोग्राफी की ट्रेनिंग ली थी। उन्होंने जर्मनी जाकर फिल्म बनाने की शिक्षा हासिल की। इसके बाद भारत वापस आकर उन्होंने फिल्में बनानी शुरू की।
फाल्के जी को भारतीय सिनेमा का पितामह भी कहा जाता है। उन्होंने फ़िल्म निर्माण में वर्ष 1913 में 'राजा हरिश्चंद्र' से डेब्यू किया था, जो भारत की पहली फुल-लेंथ फीचर फिल्म है। दादा साहेब फाल्के ने ही भारतीय सिनेमा में फिल्मों की नींव रखी थी। 'राजा हरिश्चंद्र' फ़िल्म को बनाने में 6 माह का समय लगा था। यह फिल्म 21 अप्रैल, 1913 को ओलम्पिया सिनेमा हॉल में रिलीज़ की गई। दर्शकों ने ही नहीं, बल्कि प्रेस ने भी इसकी उपेक्षा की लेकिन फालके जानते थे कि वे आम जनता के लिए अपनी फिल्म बना रहे हैं, अतः यह फिल्म ज़बरदस्त हिट रही। उन्होंने अपने करियर में 19 साल की अवधि में 95 फीचर फिल्में और 27 लघु फिल्में बनाईं।
वर्ष 1971 में उन्हें सम्मानित करने के लिए इंडिया पोस्ट द्वारा उनकी एक डाक टिकट जारी किया गया था। फालके जी के फिल्म निर्माण के प्रयास और पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र के निर्माण पर वर्ष 2001 में एक मराठी फीचर फिल्म "हरिश्चंद्राची फॅक्टरी" में बनी।
इनके द्वारा किये गए प्रमुख कार्य:
'राजा हरिश्चंद्र' बनाने के बाद उन्होंने साल 1917 में लंका दहन बनाई थी। दादा साहब फाल्के जी ने दो और पौराणिक फिल्में "भस्मासुर मोहिनी(1913)" और "सत्यवान सावित्री(1914)" बनाई थी।
कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर वर्ष 1938 में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम बोलती फिल्म "गंगावतरण" बनाई।
'राजा हरिश्चंद्र' बनाने के बाद उन्होंने साल 1917 में लंका दहन बनाई थी। दादा साहब फाल्के जी ने दो और पौराणिक फिल्में "भस्मासुर मोहिनी(1913)" और "सत्यवान सावित्री(1914)" बनाई थी।
कोल्हापुर नरेश के आग्रह पर वर्ष 1938 में दादासाहब ने अपनी पहली और अंतिम बोलती फिल्म "गंगावतरण" बनाई।
16 फरवरी, 1944 को दादा साहब फाल्के जी का निधन हो गया।
दादा साहब फाल्के पुरस्कार
दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारत सरकार की ओर से भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान के लिए दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है। इस पुरस्कार का प्रारम्भ दादा साहब फाल्के के जन्म शताब्दि-वर्ष 1969 से हुआ। राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार के लिए आयोजित 17वें समारोह में पहली बार यह सम्मान अभिनेत्री देविका रानी को प्रदान किया गया था। तब से अब तक यह पुरस्कार लक्षित वर्ष के अंत में अथवा अगले वर्ष के आरम्भ में 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' के लिए आयोजित समारोह में प्रदान किया जाता है। वर्तमान में इस पुरस्कार में 10 लाख रुपये और स्वर्ण कमल दिये जाते हैं।
विजेताओं की सूची:-
- 1969 - देविका रानी
- 1970 - बिरेंद्रनाथ सरकार
- 1971 - पृथ्वीराज कपूर
- 1972 - पंकज मल्लिक
- 1973 - रूपी मियर्स (सुलोचना)
- 1974 - बीएन रेड्डी
- 1975 - धीरेंद्रनाथ गांगुली
- 1976 - कानन देवी
- 1977 - नितिन बोस
- 1978 - रायचंद बोरल
- 1979 - सोहराब मोदी
- 1980 - पैदी जयराज
- 1981 - नौशाद
- 1982 - एलवी प्रसाद
- 1983 - दुर्गा खोटे
- 1984 - सत्यजीत रे
- 1985 - वी. शांताराम
- 1986 - बी नागी रेड्डी
- 1987 - राज कपूर
- 1988 - अशोक कुमार
- 1989 - लता मंगेशकर
- 1990 - अक्कीनेनी नागेश्वर राव
- 1991 - भालजी पेंधरकर
- 1992 - भूपेन हजारिका
- 1993 - मजरूह सुल्तानपुरी
- 1994 - दिलीप कुमार
- 1995 - राजकुमार
- 1996 - शिवाजी गणेसन
- 1997 - कवि प्रदीप
- 1998 - बीआर चोपड़ा
- 1999 - ऋषिकेश मुखर्जी
- 2000 - आशा भोसले
- 2001 - यश चोपड़ा
- 2002 - देवानंद
- 2003 - मृणाल सेन
- 2004 - अदूर गोपालकृष्णन
- 2005 - श्याम बेनेगल
- 2006 - तपन सिन्हा
- 2007 - मन्ना डे
- 2008 - वीके मूर्ति
- 2009 - डी. रामनायडू
- 2010 - के. बालचंद्र
- 2011 - सौमित्र चटर्जी
- 2012 - प्राण
- 2013 - गुलजार
- 2014 - शशि कपूर
- 2015 - मनोज कुमार
- 2016 - कासीनाथुनी विश्वनाथ
- 2017 - विनोद खन्ना
- 2018 - अमिताभ बच्चन
- 2019 - रजनीकांत
- 2020 - आशा पारेख