माओ पाटा नृत्य मुरिया/मुड़िया जनजातियों के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में नाटक के भी लगभग सभी तत्व विद्यमान हैं। माओपाटा का आयोजन घोटुल के प्रांगण में किया जाता है जिसमे युवक और युवतियां सम्मिलित होते हैं। नर्तक विशाल आकार के ढोल बजाते हुए करते हुए घोटुल में प्रवेश करते हैं। युवक भैंस की सींगो अथवा उसी आकार की पीतल की बनी "तोड़िया (तुरही)" को बजाते है। नर्तक पकाई हुई मिट्टी के डमरू के आकार के ढोल का प्रयोग करते है जिसे "परई" कहते है।
माओ पाटा गोंड़ी भाषा का शब्द है, जिसमें माओ का अर्थ "गौर" पशु तथा "पाटा" का अर्थ कहानी से है। इस नृत्य में गौर के पारंपरिक शिकार को प्रदर्शित किया जाता है।
पोत से बनी माला, कौड़ी और भृंगराज पक्षी के पंख की कलगी जिसे जेलिंग कहा जाता है, युवक अपनी सिर पर सजाए रहते हैं और युवतियां पोत और धातुई आभूषण, कंघियाँ और कौड़ी से श्रृंगार किये हुए रहती हैं। एक व्यक्ति गौर पशु का स्वांग लिए रहता है जिसका नृत्य के दौरान शिकार किया जाता है।
प्रमुख जनजाति
प्रमुख जनजाति नृत्य
इन्हे भी देखें :
विश्व आदिवासी दिवस
छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित अनुसूचित क्षेत्र
छत्तीसगढ़ में विशेष पिछड़ी जनजाति
विशेष पिछड़ी जनजातियों हेतु मुख्यमंत्री 11 सूत्री कार्यक्रम
अनुसूचित जनजातियों की समस्याएँ
अनुसूचित जनजातियों की साक्षरता दर
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989