दंडामी माड़िया नृत्य को गौर नृत्य भी कहते है। यह नृत्य वर्षा काल की अच्छी फसल और खुशहाली की कामना के लिए किया जाट हैं। दंडामी माड़िया जनजाति दक्षिण बस्तर के दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले में निवास करती है।
इस नृत्य में नर्तक दल दो दलों में बंट कर नृत्य करता है। नृत्य में युवक अपने सिर पर गौर नामक पशु के सींग से बना मुकुट, कोकोटा पहनते हैं जो कौड़ियों और कलगी से सजा रहता है।
युवतियां आप के सिर पर पीतल का मुकुट, टिगे पहनती हैं, गले में मोहरी माला, हाथों में बाहुटा पहने हुए होते है। इसके अलाव हाथ में लोहे की सरिया से बनी एक छड़ी ( तिरडडी ),गूजरी बड़गी रखती हैं जिसके ऊपर घुंघरू लगे रहते हैं जिसे जमीन पर पटकते हुए आकर्षक ध्वनि उत्पन्न करती हैं।
युवकों द्वारा बजाए जाने वाले ढोल के साथ तालमेल के साथ युवक और युवतियां विभिन्न प्रकार के मंडल का निर्माण करते हुए सुंदर नृत्य रचना प्रस्तुत करते हैं।
इस नृत्य में नर्तक दल दो दलों में बंट कर नृत्य करता है। नृत्य में युवक अपने सिर पर गौर नामक पशु के सींग से बना मुकुट, कोकोटा पहनते हैं जो कौड़ियों और कलगी से सजा रहता है।
युवतियां आप के सिर पर पीतल का मुकुट, टिगे पहनती हैं, गले में मोहरी माला, हाथों में बाहुटा पहने हुए होते है। इसके अलाव हाथ में लोहे की सरिया से बनी एक छड़ी ( तिरडडी ),गूजरी बड़गी रखती हैं जिसके ऊपर घुंघरू लगे रहते हैं जिसे जमीन पर पटकते हुए आकर्षक ध्वनि उत्पन्न करती हैं।
युवकों द्वारा बजाए जाने वाले ढोल के साथ तालमेल के साथ युवक और युवतियां विभिन्न प्रकार के मंडल का निर्माण करते हुए सुंदर नृत्य रचना प्रस्तुत करते हैं।
प्रमुख जनजाति नृत्य
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