छत्तीसगढ़ में गऊरा गऊरी उत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह शिव ( गऊरा ) और पार्वती ( गऊरी ) को समर्पित है। यह लोक उत्सव प्रत्येक वर्ष दीपावली और लक्ष्मी पूजा के बाद मनाया जाता है। कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष अमावस्या के वक्त यह उत्सव मनाया जाता है। इस पूजा में हिन्दू धर्म के सभी जाति समुदाय के लोग शामिल होते हैं।
मूर्ति :
लोग गांव के बाहर जाते हैं और एक स्थान पर पूजा करते हैं। उसके बाद उसी स्थान से मिट्टी लेकर गांव वापस आते हैं। और उस मिट्टी से शिव-पार्वती (गऊरा गऊरी) की मूर्ति बनाते हैं।
मूर्तियों में, गऊरा की बैल सवारी और गऊरी कछुए की सवारी करते हुए दिखाया जाता है। ये मूर्तियां बनाने के बाद लकड़ी के पिड़हे(आसन) पर उन्हें रखकर सजाया जाता है।
लोग गांव के बाहर जाते हैं और एक स्थान पर पूजा करते हैं। उसके बाद उसी स्थान से मिट्टी लेकर गांव वापस आते हैं। और उस मिट्टी से शिव-पार्वती (गऊरा गऊरी) की मूर्ति बनाते हैं।
मूर्तियों में, गऊरा की बैल सवारी और गऊरी कछुए की सवारी करते हुए दिखाया जाता है। ये मूर्तियां बनाने के बाद लकड़ी के पिड़हे(आसन) पर उन्हें रखकर सजाया जाता है।
चावल(चाउर) चढ़ाना :
इस उत्सव के पहले वह बैगा जाति के लोग के द्वारा पूजा किया जाता हैं। इस पूजा को "चावल चढ़ाना" कहते है, क्योंकि पुजा करते समय गीत गाते हुये गऊरा-गऊरी को चावल चढ़ाया जाता है।
इस उत्सव के पहले वह बैगा जाति के लोग के द्वारा पूजा किया जाता हैं। इस पूजा को "चावल चढ़ाना" कहते है, क्योंकि पुजा करते समय गीत गाते हुये गऊरा-गऊरी को चावल चढ़ाया जाता है।
रात को लक्ष्मी पूजा के बाद गऊरा गऊरी झांकी पूरे गांव में घूमती रहती है। घूमते वक्त दो कुंवारे लड़के या लड़की गऊरा गऊरी के पिड़हे सर पर रखकर चलते हैं। इस समय "गऊरा गीत" गाया जाता है।
गौरी-गौरा उत्सव के साथ राज्य में मातर तिहार मनाया जाता है।
इन्हे देखें :