लोगो के मध्य यह मान्यता है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम अपने वनवास काल के दौरान दक्षिण की तरफ गमन के दौरान रामाराम पहुँचे थे, वर्तमान में यहाँ मंदिर है। मान्यता है कि श्री राम ने भू-देवी की आराधना यहां की थी।
श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास, नई दिल्ली द्वारा श्रीराम वनगमन स्थल के रूप में रामाराम को सालों पहले चिन्ह्ति किया गया है।
मेला :
रामाराम में प्रतिवर्ष फरवरी माह में भव्य मेला का आयोजन होता है। बस्तर के इतिहास के अनुसार 608 सालों से यहां मेला आयोजन होता आ रहा है। वही सुकमा जमीदार परिवार रियासत काल से यहां पर देवी.देवताओं की पूजा करते आ रहे है।
रामाराम में प्रतिवर्ष फरवरी माह में भव्य मेला का आयोजन होता है। बस्तर के इतिहास के अनुसार 608 सालों से यहां मेला आयोजन होता आ रहा है। वही सुकमा जमीदार परिवार रियासत काल से यहां पर देवी.देवताओं की पूजा करते आ रहे है।
मां रामारामिन की डोली रामाराम के लिए राजवाड़ा से निकलती है। माता की डोली की पूजा नगर में जगह-जगह होती है। इस उत्सव में आस-पास के देवी-देवताओं भी पहुंचते है। रामाराम मेले के बाद जिले में जगह-जगह मेले का आयोजन शुरू होगा।
मान्यता है कि रामाराम में तीन देवीयों का मिलन होता है जो बहने रहती है। ये तीन बहने माता चिटमिटिन, रामारामिन और मुजरिया छिन्दगढ़ है।
मान्यता है कि रामाराम में तीन देवीयों का मिलन होता है जो बहने रहती है। ये तीन बहने माता चिटमिटिन, रामारामिन और मुजरिया छिन्दगढ़ है।
इंजरम ( Injram )
सुकमा से कोंटा की ओर लगभग 70 किलोमीटर दूर स्थित एक गाँव है जो राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोंटा से पहले 10 KM दूर आता है। मान्यतानुसार रामाराम के बाद श्रीराम इंजरम पहुंचकर भगवान शिव की स्थापना कर महाकाल को मनाया था।
मान्यताओं के अनुसार, रामायण काल ( त्रेता युग ) में ऋषि इनजी का आश्रम इस गांव में स्थित था। “तोजे राम वथोद” का अर्थ है कि राम स्थानीय भाषा में यहां आए थे, इस कारण से इस स्थान को इंजरम के नाम से जाना जाता है। यह स्थल मुख्य सड़क से दाहिनी ओर सिर्फ 100 मीटर की दूरी पर स्थित हूं। यहां विभिन्न देवताओं की कई प्राचीन मूर्तियों के खंडहर हैं।
पोलवारम बांध के डूबान क्षेत्र में आ रहे कोंटा ब्लॉक के 18 ग्राम पंचायतों में से एक इंजरम भी है।
इन्हे देखें: