जिला राजनांदगांव 26 जनवरी 1973 को तात्कालिक दुर्ग जिले से अलग हो कर अस्तित्व में आया। रियासत काल में राजनांदगांव एक राज्य के रूप में विकसित था एवं यहाँ पर सोमवंशी, कलचुरी एवं मराठाओं का शासन रहा. पूर्व में यह नंदग्राम के नाम से जाना जाता था। यहाँ की रियासत कालीन महल, हवेली राज मंदिर इत्यादि स्वयं इस जगह की गौरवशाली समाज, संस्कृति, परंपरा एवं राजाओं की कहानी कहता है. साहित्य के क्षेत्र में श्री गजनानद माधव मुक्तिबोध, श्री पदुमलाल पुन्नालाल बक्षी एवं श्री बल्देव प्रसाद मिश्रा का योगदान विशिष्ठ रहा है।
जिले का पुनर्गठन
1948 में, रियासत राज्य और राजधानी शहर राजनांदगांव मध्य भारत के बाद में मध्य प्रदेश के दुर्ग जिले में विलय कर दिया गया था। 1973 में, राजनांदगांव को दुर्ग जिले से बाहर निकाला गया और नया राजनांदगांव जिला बनाया गया था। राजनांदगांव जिले का प्रशासनिक मुख्यालय बन गया। 1 जुलाई 1998 को इस जिले के कुछ हिस्से को अलग कर एक नया जिला कबीरधाम की स्थापना हुई। जिला राजनांदगांव छत्तीसगढ़ राज्य के मध्य भाग में स्थित है। जिला मुख्यालय राजनांदगांव दक्षिण-पूर्व रेलवे मार्ग स्थित है। राष्ट्रीय राज़ मार्ग 6 राजनांदगांव शहर से हो कर गुजरता है। नजदीकी हवाई अड्डा माना (रायपुर) यहाँ से करीब 80 किलोमीटर की दुरी पर है।
खारा रिजर्व वन :
यह एक संरक्षित वन (जिसे आरक्षित वन भी कहा जाता है) है।
शिव मन्दिर - गंडई (टिकरी पारा) :
यह शिव मंदिर भूमिज में पूर्वाभिमुखी निर्मित है। यह मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि का है। इस मंदिर का निर्माण 13-14 वीं शताब्दी में किया गया था।
शिव मंदिर - (नव उत्खनित) घटियारी :
स्थापत्य कला की दृष्टि से मात्र-अधिष्ठान तथा गर्भगृह शेष है । इस मंदिर का निर्माण 11-12 वीं शताब्दी में किया गया था ।
नर्मदा कुंड - नर्मदा
यह प्राकृतिक जल स्त्रोत (जल कुंड) है । मराठा कालीन पंचायतन शैली का मंदिर है ।
बम्लेश्वरी मंदिर - डोंगरगढ़
पहाड़ी में स्थित बगुलामुखी (बम्लेश्वरी) मंदिर है । शारदीय एवं वासंतीय नवरात्री में भव्य मेला आयोजित किया जाता है ।
डोंगरगढ़ का प्रचीन नाम कामावतीपुरी है।कामावतीपुरी के राजा वीरसेन ने डोंगरगढ़ की पहाड़ी में महेश्वरी देवी का मंदिर बनवाया था यह मंदिर बम्लेश्वरी देवी के मंदिर के लिये विख्यात डोंगरगढ एक ऎतिहासिक नगरी है। यहां माँ बम्लेश्वरी के दो मंदिर है। पहला एक हजार फीट पर स्थित है जो कि बडी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है। मां बम्लेश्वरी के मंदिर मे प्रतिवर्ष नवरात्र के समय दो बार विराट मेला आयोजित किया जाता है जिसमे लाखो की संख्या मे दर्शनार्थी भाग लेते है। चारो ओर हरी-भरी पहाडियों, छोटे-बडे तालाबो एवं पश्चिम मे पनियाजोब जलाशय, उत्तर मे ढारा जलाशय तथा दक्षिण मे मडियान जलाशय से घिरा प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण स्थान है डोंगरगढ।
मण्दीप खोल - ठाकुरटोला
यहां प्राकृतिक गुफा एवं पानी का स्त्रोत है ।
पर्यटन
खारा रिजर्व वन :
यह एक संरक्षित वन (जिसे आरक्षित वन भी कहा जाता है) है।
शिव मन्दिर - गंडई (टिकरी पारा) :
यह शिव मंदिर भूमिज में पूर्वाभिमुखी निर्मित है। यह मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से उच्चकोटि का है। इस मंदिर का निर्माण 13-14 वीं शताब्दी में किया गया था।
शिव मंदिर - (नव उत्खनित) घटियारी :
स्थापत्य कला की दृष्टि से मात्र-अधिष्ठान तथा गर्भगृह शेष है । इस मंदिर का निर्माण 11-12 वीं शताब्दी में किया गया था ।
नर्मदा कुंड - नर्मदा
यह प्राकृतिक जल स्त्रोत (जल कुंड) है । मराठा कालीन पंचायतन शैली का मंदिर है ।
बम्लेश्वरी मंदिर - डोंगरगढ़
पहाड़ी में स्थित बगुलामुखी (बम्लेश्वरी) मंदिर है । शारदीय एवं वासंतीय नवरात्री में भव्य मेला आयोजित किया जाता है ।
डोंगरगढ़ का प्रचीन नाम कामावतीपुरी है।कामावतीपुरी के राजा वीरसेन ने डोंगरगढ़ की पहाड़ी में महेश्वरी देवी का मंदिर बनवाया था यह मंदिर बम्लेश्वरी देवी के मंदिर के लिये विख्यात डोंगरगढ एक ऎतिहासिक नगरी है। यहां माँ बम्लेश्वरी के दो मंदिर है। पहला एक हजार फीट पर स्थित है जो कि बडी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है। मां बम्लेश्वरी के मंदिर मे प्रतिवर्ष नवरात्र के समय दो बार विराट मेला आयोजित किया जाता है जिसमे लाखो की संख्या मे दर्शनार्थी भाग लेते है। चारो ओर हरी-भरी पहाडियों, छोटे-बडे तालाबो एवं पश्चिम मे पनियाजोब जलाशय, उत्तर मे ढारा जलाशय तथा दक्षिण मे मडियान जलाशय से घिरा प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण स्थान है डोंगरगढ।
मण्दीप खोल - ठाकुरटोला
यहां प्राकृतिक गुफा एवं पानी का स्त्रोत है ।
छत्तीसगढ़ के जिलें :
सरगुजा, सूरजपुर , बलरामपुर, कोरिया, जशपुर, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, गौरेला-पेन्ड्रा-मरवाह, मुंगेली, जांजगीर-चाम्पा,