समास एवं समास विग्रह


समास का तात्पर्य है ‘संक्षिप्तीकरण’। दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए एक नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं। जैसे - ‘रसोई के लिए घर’ इसे हम ‘रसोईघर’ भी कह सकते हैं। संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में समास का बहुतायत में प्रयोग होता है।

समास के बारे में संस्कृत में एक सूक्ति प्रसिद्ध है:
वन्द्वो द्विगुरपि चाहं मद्गेहे नित्यमव्ययीभावः।
तत् पुरुष कर्म धारय येनाहं स्यां बहुव्रीहिः॥

सामासिक शब्द
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहते हैं। समास होने के बाद विभक्तियों के चिह्न (परसर्ग) लुप्त हो जाते हैं। जैसे-राजपुत्र।
समास-विग्रह
सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है।विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाताहै जैसे-राज+पुत्र-राजा का पुत्र।
पूर्वपद और उत्तरपद
समास में दो पद (शब्द) होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे पद को उत्तरपद कहते हैं।
जैसे- गंगाजल = गंगा (पूर्वपद) + जल (उत्तरपद)

समास के प्रकार -
समास के छः प्रकार हैं:
  1. अव्ययीभाव
  2. तत्पुरुष
  3. द्विगु
  4. द्वन्द्व
  5. बहुव्रीहि
  6. कर्मधारय

पदों की प्रधानता के आधार पर समास को चार भागों में बांटा गया है:
अव्ययीभाव - प्रथम (पूर्व पद) पद प्रधान।
तत्पुरुष - उत्तरपद प्रधान।
द्वंद - दोनों पद प्रधान।
बहुब्रीहि - दोनों पद मिल कर अन्य अर्थ प्रस्तुत करते है।

अव्ययीभाव
जिस समास का पूर्व पद प्रधान हो, और वह अव्यय हो उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे - यथामति (मति के अनुसार), आमरण (मृत्यु तक) इनमें यथा और आ अव्यय हैं। जहां एक ही शब्द की बार बार आवृत्ति हो, अव्ययीभाव समास होता है जैसे - दिनोंदिन, रातोंरात, घर घर, हाथों-हाथ आदि।

उदाहरण:
आकण्ठ - कंठ से लेकर
आजीवन - जीवन-भर
यथासामर्थ्य - सामर्थ्य के अनुसार
यथाशक्ति - शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम - क्रम के अनुसार
भरपेट- पेट भरकर
हररोज़ - रोज़-रोज़
हाथोंहाथ - हाथ ही हाथ में
रातोंरात - रात ही रात में
प्रतिदिन - प्रत्येक दिन
बेशक - शक के बिना
निडर - डर के बिना
निस्संदेह - संदेह के बिना
प्रतिवर्ष - हर वर्ष
आमरण - मरण तक
खूबसूरत - अच्छी सूरत वाली
निःसंदेह - बिना संदेह के
गली-गली - प्रत्येक गली
गाँव-गाँव - प्रत्येक गाँव
घर-घर - प्रत्येक घर
घड़ी-घड़ी - प्रत्येक घड़ी
दिनोदिन - प्रत्येक दिन

अव्ययी समास की पहचान - इसमें समस्त पद अव्यय बन जाता है अर्थात समास लगाने के बाद उसका रूप कभी नहीं बदलता है। इसके साथ विभक्ति चिह्न भी नहीं लगता। जैसे - ऊपर के समस्त शब्द है।

तत्पुरुष
'तत्पुरुष समास - जिस समास का उत्तर पद प्रधान हो और पूर्व गौण हो उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - तुलसीदासकृत = तुलसीदास द्वारा कृत (रचित)
ज्ञातव्य- विग्रह में जो कारक प्रकट हो उसी कारक वाला वह समास होता है।
विभक्तियों के नाम के अनुसार तत्पुरुष समास के छह भेद हैं-

कर्म तत्पुरुष (द्वितीया कारक चिन्ह)
गिरहकट - गिरह को काटने वाला

करण तत्पुरुष
धर्म विमुख - धर्म से विमुख
मनचाहा - मन से चाहा

संप्रदान तत्पुरुष
हथकड़ी - हांथ के लिए कड़ी
रसोईघर - रसोई के लिए घर

अपादान तत्पुरुष
जन्मांध - जन्म से अंधा
धनहीन - धन से हीन
देशनिकाला - देश से निकाला

संबंध तत्पुरुष
गंगाजल - गंगा का जल
जनतंत्र - जनता का तंत्र

अधिकरण तत्पुरुष
नगरवास - नगर में वास
पुरषोत्तम - पुरषो में उत्तम
वनवास - वन में वास

नञ तत्पुरुष समास
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे -
असभ्यन - सभ्यअनंतन अंत
अनादिन - आदिअसंभवन संभव
नास्तिक - न आस्तिक

कर्मधारय
जिस समास का उत्तरपद प्रधान हो और पूर्वपद व उत्तरपद में विशेषण-विशेष्य अथवा उपमान-उपमेय का संबंध हो वह कर्मधारय समास कहलाता है।
उदाहरण:
भवसागर - संसार रूपी सागर
घनश्याम - बादल जैसे काला
चंद्रमुख - चंद्र जैसा मुख
कमलनयन - कमल के समान नयन
देहलता - देह रूपी लता
दहीबड़ा - दही में डूबा बड़ा
नीलकमल - नीला कमल
पीतांबर - पीला अंबर (वस्त्र)
सज्जन - सत् (अच्छा) जन
नरसिंह - नरों में सिंह के समान

द्विगु
जिस समास का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो उसे द्विगु समास कहते हैं। इससे समूह अथवा समाहार का बोध होता है।
उदाहरण:
अठन्नी - आठ आनों का समूह
नवग्रह - नौ ग्रहों का समूह
दोपहर - दो पहरों का समाहार
त्रयम्बकेश्वर - तीन लोकों का ईश्वर
त्रिलोक - तीन लोकों का समाहार
त्रिफला - तीन फलों का समाहार
चौमासा - चार मासों का समूह
नवग्रह - नव ग्रहों का समाहार
नवरात्र - नौ रात्रियों का समूह
पंजाब - पाँच आबो का समूह
पंचतत्व - पाँच तत्वों का समाहार
शताब्दी - सौ अब्दो (वर्षों) का समूह
षट्रस - छः रसों का समाहार
सप्तद्वीप - सात द्वीपों का समाहार

द्वन्द्व
जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर ‘और’, अथवा, ‘या’, एवं योजक चिन्ह लगते हैं, वह द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे- 'माता और पिता' का समस्तपद माता-पिता होगा।
उदाहरण :
अपना-पराया - अपना और पराया
ऊँच-नीच - ऊँच और नीच
तन-मन - तन और मन
दाल-रोटी - दाल और रोटी
देवासुर - देव और असुर
लाभालाभ - लाभ और अलाभ
एकतीस - तीस और एक

बहुव्रीहि
जिस समास के दोनों पद अप्रधान हों और समस्तपद के अर्थ के अतिरिक्त कोई सांकेतिक अर्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।
उदाहरण:
अल्पबुद्धि - अल्प है बुद्धि जिसकी
कनफटा - कान है फटा जसका
गिरिधर - गिरि को धारण करने वाला, अर्थात कृष्ण
चक्रधर - चक्र धारण करने वाला, अर्थात विष्णु
त्रिलोचन - तीन आँखों वाला, अर्थात शिव
त्रिवेणी - तीन नदियों का संगम स्थल, अर्थात प्रयाग
दशानन - दश है आनन (मुख), अर्थात रावण
निशाचर - निशा में विचरण करने वाला, अर्थात राक्षस
नीलकंठ - नीला है कंठ, अर्थात शिव
सुलोचना - सुंदर है लोचन,अर्थात मेघनाद की पत्नी
पीतांबर - पीला है अम्बर (वस्त्र), अर्थात श्रीकृष्ण
लंबोदर - लंबा है उदर (पेट), अर्थात् गणेशजी
दुरात्मा - बुरी आत्मा वाला ( दुष्ट)
श्वेतांबर - श्वेत है जिसके अंबर (वस्त्र), सरस्वती जी