देवबलोदा का शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से करीब 25 किलोमीटर और भिलाई से करीब 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शिव मंदिर 12 वीं से 13वीं शताब्दी का कलचुरी कालीन माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग भूरे रंग की है। कलचुरी राजवंश के दौरान बलुआ प्रस्तर से बने इस मंदिर में सबसे खास बात कि इस मंदिर का शिखर ही नहीं है।
इस मंदिर के बगल में ही एक बावड़ीनुमा कुंड बना हुआ है। इस कुंड की खासियत है कि गर्मी के दिनों में भी इसका पानी नहीं सूखता। शिवरात्रि के अवसर पर यहां दो दिन का बड़ा मेला लगता है जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
खजुराहो की तर्ज पर शिव और कई देवी-देवताओं की नक्काशीदार प्रतिमाएं आकर्षण का केन्द्र हैं। देवबलोदा के इस प्राचीन मंदिर की बनावट ही दर्शनीय है।
यह मंदिर प्राचीन संस्मारक एवं पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम 1958 के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व का घोषित किया गया है।
मन्दिर अधूरा क्यो रह गया?
किव्य्दंती के अनुसार, शिल्पकार की पत्नी रोज खाना लेकर आती थी। एक दिन उसकी बहन खाना लेकर आई। कारीगर नग्न अवस्था में मंदिर का निर्माण कर रहा था। अपनी बहन को देखकर वह मंदिर के निकट स्थित कुंड में कूद गया। उसकी बहन मंदिर के पीछे स्थित तालाब में कूद गई। इस वजह से मंदिर के ऊपर गुम्बद का निर्माण नहीं हो पाया। मंदिर अधूरा रह गया। आज भी इसी हालत में लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं।
मन्दिर अधूरा क्यो रह गया?
किव्य्दंती के अनुसार, शिल्पकार की पत्नी रोज खाना लेकर आती थी। एक दिन उसकी बहन खाना लेकर आई। कारीगर नग्न अवस्था में मंदिर का निर्माण कर रहा था। अपनी बहन को देखकर वह मंदिर के निकट स्थित कुंड में कूद गया। उसकी बहन मंदिर के पीछे स्थित तालाब में कूद गई। इस वजह से मंदिर के ऊपर गुम्बद का निर्माण नहीं हो पाया। मंदिर अधूरा रह गया। आज भी इसी हालत में लोग यहां दर्शन करने पहुंचते हैं।
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