जन्म: 6 जुलाई 1901
मृत्यु: 23 जून 1953
मृत्यु: 23 जून 1953
इनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे एवं शिक्षाविद् के रूप में विख्यात थे। डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी शिक्षाविद्, चिन्तक थे। अक्टूबर, 1951 में इन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। 1944 में हिन्दू महासभा के अध्यक्ष भी चुने गए।
शिक्षा:
शिक्षा:
डॉ॰ मुखर्जी ने 1917 में मैट्रिक किया तथा 1921 में बी०ए० की उपाधि प्राप्त की।1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वे सबसे कम आयु के कुलपति थे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मंत्रिमंडल:
साल 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो डॉ. मुखर्जी देश के प्रथम उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बने। लेकिन कुछ साल बाद उन्होंने इस पद से भी इस्तीफा दे दिया. दरअसल लियाकत-नेहरू पैक्ट को वे हिंदुओं के साथ छलावा मानते थे और इसी बात पर 8 अप्रैल 1950 को उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
साल 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो डॉ. मुखर्जी देश के प्रथम उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री बने। लेकिन कुछ साल बाद उन्होंने इस पद से भी इस्तीफा दे दिया. दरअसल लियाकत-नेहरू पैक्ट को वे हिंदुओं के साथ छलावा मानते थे और इसी बात पर 8 अप्रैल 1950 को उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
जनसंघ की नींव एवं पहला आम चुनाव:
आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से सलाह करने के बाद 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में एक छोटे से कार्यक्रम से भारतीय जनसंघ की नींव पड़ी और डॉ. मुखर्जी उसके पहले अध्यक्ष चुने गए।
1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ और जनसंघ तीन सीटें जीत पाने में कामयाब रहा। डॉ. मुखर्जी भी बंगाल से जीत कर लोकसभा में आए। वे सदन में पंडित नेहरू की नीतियों पर तीखा प्रहार करते थे।
आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से सलाह करने के बाद 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में एक छोटे से कार्यक्रम से भारतीय जनसंघ की नींव पड़ी और डॉ. मुखर्जी उसके पहले अध्यक्ष चुने गए।
1952 में देश में पहला आम चुनाव हुआ और जनसंघ तीन सीटें जीत पाने में कामयाब रहा। डॉ. मुखर्जी भी बंगाल से जीत कर लोकसभा में आए। वे सदन में पंडित नेहरू की नीतियों पर तीखा प्रहार करते थे।
मृत्यु:
डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इन्होंने संसद में अपने भाषण में धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। अपने संकल्प ‘एक देश में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। इन्होंने संसद में अपने भाषण में धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। अपने संकल्प ‘एक देश में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ को पूरा करने के लिये वे 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।