असहयोग आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी जी के द्वारा 1अगस्त 1920 से की गयी। लाला लाजपत राय की अध्यक्षता वाले कांग्रेस की कलकत्ता विशेष अधिवेशन में प्रस्ताव लाया गया। दिसंबर 1920 के नागपुर अधिवेशन में प्रस्ताव को समर्थन दिया गया।
छत्तीसगढ़ से भाग लेने वाले नेता:
पण्डित रविशंकर शुक्ल, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा, सी.एम. ठक्कर, नारायण राव मेघवाले आदि।
छत्तीसगढ़ से भाग लेने वाले नेता:
पण्डित रविशंकर शुक्ल, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा, सी.एम. ठक्कर, नारायण राव मेघवाले आदि।
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छत्तीसगढ़ में प्रभाव
छ्त्तीसगढ़ में लोगो ने सरकारी उपाधियों, सरकारी अदालतों, विद्यालय का बहिष्कार किया। बाजीराव कृदन्त ने धमतरी के प्रांतीय विधानसभा का परित्याग किया। यादवराव देशमुख ने रायपुर जिला परिषद का तथा महंत लक्ष्मीनारायण, सोमेश्वर शुक्ल ने शासकीय सेवा का परित्याग किया। इस आंदोलन के दौरान ही 1921 में डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी तथा सुभद्रा कुमारी चौहान का छ्त्तीसगढ़ आगमन हुआ।वकालत का परित्याग:-
बिलासपुर : बैरिस्टर छेदिलाल, ई. राघवेंद्रराव, एन. आर खान खोजे, डी. के मेहता।
रायपुर : पण्डित रामदयाल तिवारी, यादवराव देशमुख।
दुर्ग : घनश्याम सिंह गुप्त, रत्नाकर झा।
राजनांदगांव : ठाकुर प्यारेलाल सिंह, बलदेव प्रसाद मिश्र।
राय साहब की उपाधि का परित्याग:-
वामनराव लाखे, बैरिस्टर कल्याण सिंह, मोरार जी थेरकर, सेठ गोपी किसन, बैरिस्टर नरेन्द्रनाथ।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार:-
1 अप्रैल 1921 को छ्त्तीसगढ़ में जगह-जगह विदेशी कपड़ो की होली जलाई गई।
माखनलाल चतुर्वेदी का ओजस्वी भाषण:-
बिलासपुर के शनिचरी बाजार में 12 मार्च 1921 के माखनलाल चतुर्वेदी ने अंग्रेजो के खिलाफ ओजस्वी भाषण दिया। पं. माखन लाल चतुर्वेदी ने पांच जुलाई 1921 को 'पुष्प की अभिलाषा' कविता लिखी थी। उन्हें गिरफ्तार कर केंद्रीय जेल बिलासपुर में बंद कर दिया गया था। बाद में उन्हें 12 मई 1922 को जबलपुर से गिरफ्तार कर बिलासपुर जेल में बंद कर दिया गया। बिलासपुर जेल में इन्होंने "पुष्प की अभिलाषा", "पर्वत की अभिलाषा" तथा "पूरी नहीं सुनोगे तान" रचनाएँ की।
राष्ट्रीय जागरण हेतु माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा कर्मवीर नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया गया।
सत्याग्रह आश्रम:-
7 फरवरी 1921 को पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने रायपुर में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। सुन्दरलाल शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया। इन्होंने कारावास के दौरान "श्री कृष्ण जन्म स्थान" नामक पत्रिका का संपादन किया।
उपवास:-
राजनांदगांव के छबिराम चौबे ने इस आंदोलन से प्रभावित हो कर 21 दिनों की भूख हड़ताल की।
राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना:-
आंदोलन से प्रभावित हो कर छात्रों ने सरकारी संस्थाओं को त्याग दिया। इन छात्रों के द्वारा 5 फरवरी 1921 को रायपुर में एक राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई। माधवराव सप्रे के द्वारा रायपुर में पहली महिला पाठशाला की स्थापना की गई।
रायपुर - माधवराव सप्रे
बिलासपुर - बद्रीनाथ साव
राजनांदगांव - ठाकुर प्यारेलाल
धमतरी - बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव
राष्ट्रीय पंचायत:-
रायपुर - जसकरण दागा
धमतरी - बाजीराव कृदन्त
जंगल सत्याग्रह: पूर्ण पढ़ें
असहयोग आंदोलन के समय 21 जावरी 1922 को सिहावा(धमतरी) में छत्तीसगढ़ का प्रथम जंगल सत्याग्रह हुआ। जिसका नेतृत्व, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा तथा नारायण मेघवाले ने किया।
सत्याग्रह आश्रम:-
7 फरवरी 1921 को पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने रायपुर में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। सुन्दरलाल शर्मा को गिरफ्तार कर लिया गया। इन्होंने कारावास के दौरान "श्री कृष्ण जन्म स्थान" नामक पत्रिका का संपादन किया।
उपवास:-
राजनांदगांव के छबिराम चौबे ने इस आंदोलन से प्रभावित हो कर 21 दिनों की भूख हड़ताल की।
राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना:-
आंदोलन से प्रभावित हो कर छात्रों ने सरकारी संस्थाओं को त्याग दिया। इन छात्रों के द्वारा 5 फरवरी 1921 को रायपुर में एक राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई। माधवराव सप्रे के द्वारा रायपुर में पहली महिला पाठशाला की स्थापना की गई।
रायपुर - माधवराव सप्रे
बिलासपुर - बद्रीनाथ साव
राजनांदगांव - ठाकुर प्यारेलाल
धमतरी - बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव
राष्ट्रीय पंचायत:-
रायपुर - जसकरण दागा
धमतरी - बाजीराव कृदन्त
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असहयोग आंदोलन के समय 21 जावरी 1922 को सिहावा(धमतरी) में छत्तीसगढ़ का प्रथम जंगल सत्याग्रह हुआ। जिसका नेतृत्व, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा तथा नारायण मेघवाले ने किया।
आंदोलन का समापन ( चौरी-चौरा कांड )
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास का एक कस्बा है चौरा जहाँ असहयोग आंदोलन के दौरान 4 फ़रवरी 1922 को प्रदर्शन करने वालो ने पुलिस चौकी को आग लगा दी थी जिससे उसमें छुपे हुए 22 पुलिस कर्मचारी मारे गए थे। इसके परिणामस्वरूप गांधीजी ने कहा था कि हिंसा होने के कारण असहयोग आन्दोलन उपयुक्त नहीं रह गया है और उसे वापस ले लिया था। इस कार्यवाही की वजह से गाँधी जी के द्वारा 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली प्रस्ताव से आंदोलन वापस ले लिया गया। गांधी जी के इस निर्णय से आहत हो कर स्वराज दल का गठन किया गया।
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