मथैरना कला:-
मथैरना कला के लिए बीकानेर प्रशिद्ध हैं ।
इसमें दीवारों पर देवी देवताओं के चित्रों की डिजाईन की जाती हैं
बीकानेर का मथैरना परिवार इस कला में सिद्धहस्त हैं।
उस्ता कला:-
यह कला भी बीकानेर की प्रशिद्ध हैं। इसे मुनवत कला भी कहते है।
उस्ता कला में ऊंट की खाल पर मुनवत के कार्य किये जाते है।
इस कला का विकास बीकानेर के सिद्धहस्त कलाकार स्वर्गिय हिसामुद्धीन उस्ता ने किया था। इन्हें 1986 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
उस्ता कला का परशिक्षण केंद्र बीकानेर में camel Hide training center संस्थान हैं
इस कला को बीकानेर लाने का श्रेय रायसिंह और इसका स्वर्ण काल कर्णसिंह के समय था।
टेराकोटा कला:-
इसमें पक्की लाल मिटटी से सजावटी सामान बनाया जाता हैं।
यह कला राजसमन्द का एक गाँव हैमोलेला वहां की प्रशिद्ध हैं।
फड़ व मांदल नामक वाद्य यंत्र का निर्माण मोलेला में होता है।
कागजी टेराकोटा के लिए अलवर प्रसिद्ध है। सुनहरी टेराकोटा के लिए बीकानेर प्रसिद्ध है।
पॉटरी कला:-
चीनी मिट्टी से बने सामान के उसके ऊपर सजावट करना ही पॉटरी कला है। यह कला पर्शिया(ईरान) से लाई गई थी
पॉटरी कला कई जगह की पसंद हैं जैसे
जयपुर की ब्लू पॉटरी प्रशिद्ध हैं जयपुर की ब्लू पॉटरी को विश्वविख्यात यानि विश्व स्तर का दर्जा दिलाने में कृपालसिंह शेखावत जो सीकर के रहने वाले थे उनका बहुत बड़ा योगदान रहा और इस कला का विकास यानी स्वर्ण कल महाराजा रामसिंह के काल में हुआ
इसी प्रकार ब्लैक पॉटरी कोटा की प्रशिद्ध हैं और
कागजी पॉटरी अलवर की प्रशिद्ध हैं।
मीनाकारी कला:-
सोने चांदी व पत्थर पर रंग भरने की कला को मीनाकारी कहते हैं
मीनाकारी जयपुर की बहुत प्रशिद्ध हैं मीनाकारी कला को जयपुर के शासक मानसिंह लाहौर (पाकिस्तान ) से लाये थे
जयपुर में इस कला के प्रमुख कलाकार कुदरत सिंह हुए थे
जयपुर के अलावा बीकानेर की कागजी मीनाकारी प्रशिद्ध हैं यह कलाकारी कागज जैसे पतले पत्थर पर सोने तथा अन्य धातु की कलाकारी को कागजी मीनाकारी कहते हैं
इनके अलावा अलवर और जयपुर पीतल की मीनाकारी भी होती हैं।
थेवा कला:-
कांच पर सूक्ष्म कारीगरी को थेवा कला कहते हैं यानि सोने व चांदी पर कीमती कांच लगवाया जाता हैं
यह कला प्रतापगढ़ की प्रशिद्ध हैं
प्रतापगढ़ का सोनी परिवार इस कला के लिए प्रशिद्ध हैं
इसमें इस्तेमाल होने वाले विशेष कांच को बेल्जियम से मंगवाया जाता हैं।