छत्तीसगढ़ की लोक चित्रकला
1. चैक (रंगोली)
भारतीय परंपरा में चैकों (रंगोलियों) का विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ में इसे कई अलग नामों व पर्वों के आधार पर बनाया जाता है। जैसे- डंडा चैक, बिहई चैक, छट्ठी चैक, गुरूवारिया चैक, बेलिया, चांदनी, संकरी, गोलबारी, कादापान, कुसियारा, पुरइनपान आदि। चैक में पग, चिन्ह, बेलबूटे, ज्यामितिय आकृतियां एवं श्रृखलाबद्ध सज्जा उकेरी जाती है।
डंडा चैक
सामान्य पूजा पाठ या किसी खास प्रयोजन जैसे दशहरा की पूजा में इस चैंक को बनाया जाता है। आटे से या कभी-कभी धान से इस चैक को बनाया जाता है। इसके ऊपर पीढ़ा रखकर पूजा प्रतिष्ठा की जाती है। इसे सुहागिन महिलायें करती है। इसे डंडा चैक कहते है।
बिहई चैक
विवाह के समय इस प्रकार के चैक को मायन के दिन पांच दल वाला चैक कन्या तथा सात दल वाला चैक वर पक्ष वालों के घर बनाया जाता है। इसमें चावल आटे का प्रयोग करते हैं।
भारतीय परंपरा में चैकों (रंगोलियों) का विशिष्ट स्थान है। छत्तीसगढ़ में इसे कई अलग नामों व पर्वों के आधार पर बनाया जाता है। जैसे- डंडा चैक, बिहई चैक, छट्ठी चैक, गुरूवारिया चैक, बेलिया, चांदनी, संकरी, गोलबारी, कादापान, कुसियारा, पुरइनपान आदि। चैक में पग, चिन्ह, बेलबूटे, ज्यामितिय आकृतियां एवं श्रृखलाबद्ध सज्जा उकेरी जाती है।
डंडा चैक
सामान्य पूजा पाठ या किसी खास प्रयोजन जैसे दशहरा की पूजा में इस चैंक को बनाया जाता है। आटे से या कभी-कभी धान से इस चैक को बनाया जाता है। इसके ऊपर पीढ़ा रखकर पूजा प्रतिष्ठा की जाती है। इसे सुहागिन महिलायें करती है। इसे डंडा चैक कहते है।
बिहई चैक
विवाह के समय इस प्रकार के चैक को मायन के दिन पांच दल वाला चैक कन्या तथा सात दल वाला चैक वर पक्ष वालों के घर बनाया जाता है। इसमें चावल आटे का प्रयोग करते हैं।
2. सवनाही
छत्तीसगढ़ की महिलायें श्रावण मास की हरेली अमावस्या को घर के मुख्य द्वार पर गोबर से सवनाही का अंकन करती है। इसमें चार अंगुलियों से घर के चारों ओर मोटी रेखा से घेरा जाता है और मानव, पशुओं तथा शेर के शिकार का चित्रांकन किया जाता है।
हरेली के अवसर पर जादू टोने की मान्यता को ध्यान में रखते हुए उससे बचाव के लिये ये अंकन किया जाता है।
छत्तीसगढ़ की महिलायें श्रावण मास की हरेली अमावस्या को घर के मुख्य द्वार पर गोबर से सवनाही का अंकन करती है। इसमें चार अंगुलियों से घर के चारों ओर मोटी रेखा से घेरा जाता है और मानव, पशुओं तथा शेर के शिकार का चित्रांकन किया जाता है।
हरेली के अवसर पर जादू टोने की मान्यता को ध्यान में रखते हुए उससे बचाव के लिये ये अंकन किया जाता है।
3. आठे कन्हैया
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यह मिट्टी के रंगों से बनाया जाने वाला कथानक चित्र है। इसमें कृष्ण जन्म की कथा का वण्रन होता है।
महिलाये कृष्ण की 8 पुतलियां की पूजा करती है चित्र बनाकर जो कृष्ण के पहले जन्में शिशुओं का प्रतीक है।
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यह मिट्टी के रंगों से बनाया जाने वाला कथानक चित्र है। इसमें कृष्ण जन्म की कथा का वण्रन होता है।
महिलाये कृष्ण की 8 पुतलियां की पूजा करती है चित्र बनाकर जो कृष्ण के पहले जन्में शिशुओं का प्रतीक है।
4. हरतालिका
तीजा के अवसर पर महिलाओं द्वारा हरतालिका का चित्रांकन किया जाता है।
तीजा के अवसर पर महिलाओं द्वारा हरतालिका का चित्रांकन किया जाता है।
5. नोहडोरा
नया घर बनाते समय दीवारों पर गहन अलंकरण नोहडोरा डालना कहलाता है। यह कला गीली दिवारों पर बनायी जाती है। इसमें पशु-पक्षी, फूल पत्तियां, पेड़-पौधे आदि का चित्रण किया जाता है।
नया घर बनाते समय दीवारों पर गहन अलंकरण नोहडोरा डालना कहलाता है। यह कला गीली दिवारों पर बनायी जाती है। इसमें पशु-पक्षी, फूल पत्तियां, पेड़-पौधे आदि का चित्रण किया जाता है।
6. गोवर्धन चित्रकारी
गोवर्धन पूजा के समय धन की कोठरी में समृद्धि की कामना के उद्देश्य से अनेक प्रकार के चित्र बनाकर अन्न लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
गोवर्धन पूजा के समय धन की कोठरी में समृद्धि की कामना के उद्देश्य से अनेक प्रकार के चित्र बनाकर अन्न लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
7. घर सिंगार
संपूर्ण छत्तीसगढ़ में घर सजाने की कला देखने की मिलती है। लिपी हुई दीवार पर गेरू, काजल, पीली मिट्टी आदि से विभिन्न ज्यामितियां आकृतियां रूपांकन एवं रंग संयोजन किया जाता है।
संपूर्ण छत्तीसगढ़ में घर सजाने की कला देखने की मिलती है। लिपी हुई दीवार पर गेरू, काजल, पीली मिट्टी आदि से विभिन्न ज्यामितियां आकृतियां रूपांकन एवं रंग संयोजन किया जाता है।
8. विवाह चित्र
विवाह आदि अवसरों पर छत्तीसगढ़ में चितेरे जाति के लोग दीवारों पर चित्रांकन के लिये आमंत्रित किये जाते हैं ये दीवारों पर द्वारों पर देवी-देवताओं, पशु पक्षियों, विवाह प्रसंग आदि का अंकन करते हैं।
विवाह आदि अवसरों पर छत्तीसगढ़ में चितेरे जाति के लोग दीवारों पर चित्रांकन के लिये आमंत्रित किये जाते हैं ये दीवारों पर द्वारों पर देवी-देवताओं, पशु पक्षियों, विवाह प्रसंग आदि का अंकन करते हैं।
9. गोदना
लोक चित्र शैली का एक अनूठा उदाहरण गोदना भी है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं आभूषण स्वरूप विभिन्न आकारों में गोदना गुदवाते हैं। उनकी दृष्टि में गोदना चिरसंगिनी हैं, जो मृत्यु पर्यन्त उनके साथ रहता है।
गोदना लोक जीवन का प्रतीक एवं जीवन्त लोक चित्रकला का उदाहरण है।
लोक चित्र शैली का एक अनूठा उदाहरण गोदना भी है। छत्तीसगढ़ की महिलाएं आभूषण स्वरूप विभिन्न आकारों में गोदना गुदवाते हैं। उनकी दृष्टि में गोदना चिरसंगिनी हैं, जो मृत्यु पर्यन्त उनके साथ रहता है।
गोदना लोक जीवन का प्रतीक एवं जीवन्त लोक चित्रकला का उदाहरण है।
10.बालपुर चित्रकला
उड़ीसा के बालपुर से आए चितेर जाति के लोग अपनी बालपुर चित्रकला के लिए जाने जाते हैं। इसमें पौराणिक चित्रकथाओं का अंकन किया जाता है।
उड़ीसा के बालपुर से आए चितेर जाति के लोग अपनी बालपुर चित्रकला के लिए जाने जाते हैं। इसमें पौराणिक चित्रकथाओं का अंकन किया जाता है।
11. भित्ति चित्र
रायगढ़ के पास स्थित कबरा पहाड़ की गुफाओं की भित्ती शैली इसके स्पष्ट उदाहरण है।
रायगढ़ के पास स्थित कबरा पहाड़ की गुफाओं की भित्ती शैली इसके स्पष्ट उदाहरण है।
12. हाथा
हाथ से बनाए गए थापों को हाथा कहा जाता है।
हाथ से बनाए गए थापों को हाथा कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख चित्रकार
1. बेलगूर मंडावी - नाराणयपुर जिले के गढ़बंगाल के निवासी बेलगूर मंडावी मुड़िया जनजाति के है। ये जनजाति जीवन के राष्ट्रीय चित्रकार है।
2. जनगण सिंह श्याम
जनगण सिंह श्याम गोंडी चित्रकारी के पहले कलाकार है।
इनकी लोककला का प्रमुख विषय ग्रामीण जीवन रहा है।इनके चित्रां में जनजातियों का जीवन विविधता के साथ एक संपूर्ण इकाई के रूप में जीवन्त हो उठता है।
इनकी लोककला का प्रमुख विषय ग्रामीण जीवन रहा है।इनके चित्रां में जनजातियों का जीवन विविधता के साथ एक संपूर्ण इकाई के रूप में जीवन्त हो उठता है।
3. आनंद सिंह श्याम और श्रीमती कलावती गोड़ - ये दोनों पति-पत्नि ने गोंड़ी अलंकरण परंपरा को विषय क्षेत्र बनाते हुए अनेक चित्र उकेरे है।
4. नर्मदा सोनसाय - रायपुर निवासी श्री सोनसाय जनजातियों में प्रचलित चित्रों की निपुर्ण कलाकार है।
5. श्री निवास विश्वकर्मा - ये बस्तर की माटी के गौरव पुत्र है। दृश्य चित्र उनका प्रिय विषय था।
6. बंशीलाल विश्वकर्मा
ये बस्तर के न केवल ख्याति लब्ध चित्रकार है बल्कि मूर्तिकला, काष्टकला, बेल, मेटल कला और पाषाण प्रतिमाएं के लिए भी अनोखे सर्जक है।
इन्होंने बस्तर में ‘‘आकृति‘‘, नामक कला संस्था की स्थापना की थी। जिसके माध्यम से नई पीढ़ी के शिल्पकार अपनी परंपरागत कला के सृजन में संलग्न है।
इन्होंने बस्तर में ‘‘आकृति‘‘, नामक कला संस्था की स्थापना की थी। जिसके माध्यम से नई पीढ़ी के शिल्पकार अपनी परंपरागत कला के सृजन में संलग्न है।
7. देवेन्द्र सिंह ठाकुर
बीजापुर में जन्मु देवेन्द्र सिंह ठाकुर राज्य के प्रतिष्ठित चित्रकार हैं।
ये दृश्य चित्र बनाने में अत्यंत प्रतिभाशाली रहे।
ये दृश्य चित्र बनाने में अत्यंत प्रतिभाशाली रहे।
8. खेमदास वैष्णव - दंतेवाड़ा में जन्में खेमदास वैष्णव बस्तर के पारंपरिक चित्रकला की अस्मिता को व्यापक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने का कार्य किया।
9. बनामाली रामनेताम - कांकेर जिले के ग्राम बनसागर (अमोड़ा) के निवासी वनमाली रामनेताम राज्य के प्रमुख चित्रकारों में एक है।
10. सुरेश विश्वकर्मा - जगदलपुर निवासी सुरेश विश्वकर्मा प्रतिभाशाली चित्रशिल्पी हैं, वे चित्रशिल्प के अलावा काष्ठकला एवं मूर्तिकला के भी सिद्धहस्त कलाकार है।
छत्तीसगढ़ में ‘‘आधुनिक चित्रकला‘‘
प्रवेश में स्थापित इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय (खैरागढ़) ने आधुनिक चित्रकला के प्रवाह को महत्वपूर्ण गति दी है।
छत्तीसगढ़ राज्य में प्रदेश का मुख्य चित्रकला केन्द्र रायपुर को ही माना गया है।
स्वतंत्रता के बाद भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित आर्ट गैलरी ने आधुनिक चित्रकला को व्यापक रूप से आगे बढ़ाया है।
रायपुर में स्थापित महाकौशल कला विथिका ने आधुनिक चित्रकला को न सिर्फ प्रोत्साहित किया बल्कि राज्य के सैकड़ों कलाकरों को कलात्मक मंच भी प्रदान किया।
राज्य में आधुनिक चित्रकला के कलात्मक विकास में सर्वप्रथम नाम - कल्याण प्रसाद शर्मा, ए.के. मुखर्जी, मनोहर लाल यदु, चैरागढ़े, ए.के.दानी, निरंजन महावर, श्री निवास विश्वकर्मा, देवेन्द्र ठाकुर, प्रवीण शर्मा एवं संघर्ष यदु आदि का नाम लिया जाता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में प्रदेश का मुख्य चित्रकला केन्द्र रायपुर को ही माना गया है।
स्वतंत्रता के बाद भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा संचालित आर्ट गैलरी ने आधुनिक चित्रकला को व्यापक रूप से आगे बढ़ाया है।
रायपुर में स्थापित महाकौशल कला विथिका ने आधुनिक चित्रकला को न सिर्फ प्रोत्साहित किया बल्कि राज्य के सैकड़ों कलाकरों को कलात्मक मंच भी प्रदान किया।
राज्य में आधुनिक चित्रकला के कलात्मक विकास में सर्वप्रथम नाम - कल्याण प्रसाद शर्मा, ए.के. मुखर्जी, मनोहर लाल यदु, चैरागढ़े, ए.के.दानी, निरंजन महावर, श्री निवास विश्वकर्मा, देवेन्द्र ठाकुर, प्रवीण शर्मा एवं संघर्ष यदु आदि का नाम लिया जाता है।
प्रमुख जनजाति नृत्य
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