उपसर्ग एवं प्रत्यय - Upsarg Pratyay


उपसर्ग (उप+सर्ग) उन शब्दों या अव्ययों को कहते है, जो किसी शब्द के पहले आकर विशेष अर्थ प्रगट करे। उपसर्गो का स्वतंत्र अस्तित्व न होते हुए भी वे मिलकर विशेष अर्थ प्रगट करते है।'उपसर्ग' शब्द का अर्थ होता है पास बैठकर दूसरा शब्द बनाना। उप - समीप, सर्ग - सृष्टि करना।
उपसर्गो के प्रयोगों के आधार पर शब्दों की तीन स्थितियां होती है।

1- शब्द के अर्थ में एक नई विशेषता आती है।
उदा. जन - सुजन(+सु), पति - अधिपति (+अधि)
2- शब्द के अर्थ में प्रतिकूलता उत्पन्न होती है
उदा. यश - अपयश ( +अप ), अप उपसर्ग जोड़ने पर यश का विलोम शब्द बन गया।
3- शब्द के अर्थ में कोई विशेष अंतर नही पड़ता
उदा. पूर्ण - परिपूर्ण (+परि)
उपसर्ग -
1) संस्कृत के उपसर्ग
उपसर्ग जिन्हें सीधे संस्कृत भाषा से लिया गया है। इनकी संख्या करीब 21 है।
- अति, अधि, अनु, अप, अभि, अव, आ, उत्, उप, दूर्, दस्, निर, नि, परा, परि, प्र, प्रति, वि, सम, सु
2) हिंदी के उपसर्ग
उपसर्ग जिन्हें हिंदी भाषा से लिया गया है। इनकी संख्या करीब 12 है।
- अ, अन, कु, दु, नि, आ, भर, सु, अध, उन, पर, बिन
3) अरबी-फारसी के उपसर्ग
उपसर्ग जिन्हें अरबी-फारसी भाषा से लिया गया है। इनकी संख्या करीब 12 है।
- कम, खुश, गैर, ना, बे, बा, बद, बे, ला, सर, हम, हर।
4) अंग्रेजी के उपसर्ग
उपसर्ग जिन्हें अंग्रेजी भाषा से लिया गया है।
- डिप्टी, वाइस, जनरल, चीफ, हेड
संस्कृत के अव्यय जो उपसर्ग के रूप में प्रयोग किये जाते है।
- अधः, अंत, अ, चिर, पुनर्, बहिर, सत्, पूरा, सम, सह ।
नोट - प्रत्यय व उपसर्ग अविकारी शब्दांश है।
प्रत्यय -
शब्दो के बाद जो अक्षर या अक्षर समूह जोड़ा जाता है, उन्हें प्रत्यय (प्रति + अय) कहते है। प्रत्यय का अर्थ होता है, शब्दो के साथ, परंतु बाद में चलने वाला।
प्रत्यय के दो भेद होते है -
1) कृत -
उन प्रत्ययों को कृत प्रत्यय कहा जाता है जो क्रिया या धातु के अंत में प्रयुक्त होते है। ये क्रिया या धातु को नया रूप देते है। जिसके फलस्वरूप संज्ञा और विशेषण बनते है। उनके मेल से बने शब्द को कृदन्त कहते है।
रच + अना - रचना
घट + अना - घटना
पूज् + अनीय - पूजनीय
2) तद्धित -
ये प्रत्यय संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के अंत में लगते है। इन शब्दों (प्रत्यय) को 'तद्धित' कहा जाता है।  इनके मेल से बने शब्दो को तद्धितान्त कहा जाता है।
बुरा + आई - बुराई
बाल + क - बालक
दानव + ता - दानवताा