जन्म - 1949
मृत्यु - 10 मार्च 2018
छत्तीसगढ़ की प्रशिद्ध भरतरी गायिका सुरुज बाई खांडे जी का जन्म 1949 में बिलासपुर जिले के एक सामान्य ग्रामीण परिवार में हुआ था। इन्होंने ने महज सात साल की उम्र में अपने नाना रामसाय धृतलहरे से भरथरी, ढोला-मारू, चंदैनी जैसी लोक कथाओं को सीखना शुरू कर दिया था।
इन्हें सबसे पहले रतनपुर मेले में गायन का मौका मिला। इसके बाद मध्यप्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद ने उनके इस हुनर को पहचाना और वे 1986-87 में सोवियत रूस में हुए भारत महोत्सव का हिस्सा बनने का मौका मिला।
उन्हें एसईसीएल में आर्गनाइजर की नौकरी मिली थी, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व मोटरसाइकिल से दुर्घटना होने की वजह से नौकरी कर पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने 9 साल पहले 2009 में ही रिटायरमेंट ले लिया।
10 मार्च 2018 बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में 69 वर्ष की उम्र में उनकी मृतु हो गई।
सम्मान एवं पुरुस्कार:-
2000-01 में सुरुज बाई खांडे जी को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने देवी अहिल्या बाई सम्मान से नवाजा गया। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा दाऊ रामचंद्र देशमुख और स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार भी उन्हें मिले।
मृत्यु - 10 मार्च 2018
छत्तीसगढ़ की प्रशिद्ध भरतरी गायिका सुरुज बाई खांडे जी का जन्म 1949 में बिलासपुर जिले के एक सामान्य ग्रामीण परिवार में हुआ था। इन्होंने ने महज सात साल की उम्र में अपने नाना रामसाय धृतलहरे से भरथरी, ढोला-मारू, चंदैनी जैसी लोक कथाओं को सीखना शुरू कर दिया था।
इन्हें सबसे पहले रतनपुर मेले में गायन का मौका मिला। इसके बाद मध्यप्रदेश आदिवासी लोक कला परिषद ने उनके इस हुनर को पहचाना और वे 1986-87 में सोवियत रूस में हुए भारत महोत्सव का हिस्सा बनने का मौका मिला।
उन्हें एसईसीएल में आर्गनाइजर की नौकरी मिली थी, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व मोटरसाइकिल से दुर्घटना होने की वजह से नौकरी कर पाना संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने 9 साल पहले 2009 में ही रिटायरमेंट ले लिया।
10 मार्च 2018 बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में 69 वर्ष की उम्र में उनकी मृतु हो गई।
सम्मान एवं पुरुस्कार:-
2000-01 में सुरुज बाई खांडे जी को मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने देवी अहिल्या बाई सम्मान से नवाजा गया। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा दाऊ रामचंद्र देशमुख और स्व. देवदास बंजारे स्मृति पुरस्कार भी उन्हें मिले।