छत्तीसगढ़ के लोग गीतों में जसगीत का एक विशेष प्रभाव रहा है। जसगीत देवी की स्तुति गीत, देवी से विनती, प्रार्थना करने के लिए गया जाता है।
छत्तीसगढ़ में देवी का स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है। राज्य में अनेक स्थानों पर महामाया देवी का मंदिर देखने को मिलता है जैसे रतनपुर, आरंग, रायपुर, पाटन, दन्तेवाड़ा, अम्बागढ़ चौकी, डोंगरगढ़, कांकेर और अनेक जगहों में देवी का मन्दिर है।
नवरात्रि का पर्व साल में दो बार आता है। एक शरद नवरात्रि, दूसरा है बसन्त नवरात्रि। शरद में दुर्गापूजा होती है। उस वक्त पूरे छत्तीसगढ़ में जसगीत गाये जाते हैं। नवरात्रि में पहला दिन जवारा बोया जाता है और नवमीं के दिन उसका विसर्जन होता है। जब जावरा विसर्जन करने जाते हैं, महिलाये गाती हुई जाती हैं -
तुम खेलव दुलखा
रन बन रन बन हो
का तोर लेवय रइंय बरम देव
का तोर ले गोरइंया
का लेवय तोर बन के रक्सा
रनबन रन बन हो ..
नरियर लेवय रइंया बरमदेव
बोकरा ले गोरइंया
कुकरा लेवय बन के रक्सा
रन बन रन बन हो ....
जँवारा के जसगीत में देवी धनैया और देवी कौदैया का जिक्र बार बार होता है। इसके बारे में जीवन यदु छत्तीसगढ़ी गीत में लिखते हैं - "देवी धनैया और देवी कौदैया क्षेत्रीय स्तर की लोक मातृकाएँ हैं। पुराणों में इनका कहीं उल्लेख नहीं मिलता। लोक गीतों में ये दोनों मातृकाएँ पुरान्वा स्वीकृता देवी दुर्गा की सखियाँ या सेविका के रुप में पूजित होती है .... लोक गीतों में देवी दुर्गा मूल मातृका के रुप में आती है और उन्हें
"बूढ़ी-माय" कहा जाता है"
"लिमवा के डारा मं गड़ेला हिंडोेलवा,
लाखों आये, लाखों जाये
कौन ह झूले
कौन ह झुलाये?
कौन ह देखन आये?
बूढ़ी माय झूले
कोदैया माय झुलाये
धनैया देखन आये।"
"कौन माई पहिरे गजरा?
कौन माई पहिरे हार?
कौन माई पहिरे माथ मटुकिया
सोला ओ सिंगार
मैया फूल गजरा
धनैया पहिरे गजरा
कोदैया पहिरे हार।
बुढ़ी माई पहिरे माथ मटुकिया
सोलाओं सिंगार
मैया फूल गजरा।।
दोनों देवियों की कही मूर्ति और मन्दिर दिखाई देती है। दोनों देवियों को फसलों की देवी के रुप में लोग मानते थे एवं इसीलिये लोक गीतों में उनका नाम आदर के साथ लिये जाते है। जसगीतों के माध्यम से ये दोनों देवियाँ छत्तीसगढ़ के लोगों के मन के भीतर अपनी जगह बना ली है।