भारत मे आरक्षण का इतिहास - Bharat Me Arakshan Ka Itihas


भारत में आरक्षण सुरुवात वर्ष 1882 मे कोल्हापुर के महाराज साहू के द्वारा की गयी थी। यह आरक्षण महाराष्ट्र में लागू किया गया था। साहू ने आरक्षण सामाजिक सुधार के लिए लगाया था। उन्होंने राज्य में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए पहले आरंभ  किया था।

भारत के इतिहास धार्मिक आधार पर आरक्षण की सुरुवात 1909 के मर्ले-मिंटो सुधार से हुई। इस अधिनियम में साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया था। 1931 के द्वितीय गिलमेज सम्मेलन में भीमराव अम्बेटकर ने दलितों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की मांग रखी। 1932 मे महात्मा गांधी और भीमराव अम्बेटकर के मध्य "पूना समझौता" हुआ। जिसके तहत दलितों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व के स्थान पर केंद्रीय व राज्य व्यवस्थापिका म् जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था की गई।
1932 मे ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड के "कम्युनल अवार्ड" के द्वारा धार्मिक आरक्षण को बल मिला।
1935 के भारत शासन अधिनियम में कतिपय वर्गो के लिए विशेष प्रावधान किया गया।

सदन में आरक्षण
भारतीय मूल संविधान में अनुच्छेद 334 के अधीन आरक्षण की व्यवस्था ( लोकसभा, राज्य विधानसभा ) 10 वर्षो के लिए निर्धारित की गई थी। जिसके बाद इसे खत्म हो जाना था। परंतु यह प्रत्येक 10 वर्षो के लिए बढ़ता चला गया। 104 वे संविधान संशोधन, 2019 के द्वारा सदन में आरक्षण को 10 वर्षों के लिए (2030 तक) बढ़ा दिया गया।


शिक्षण संस्थानों में आरक्षण
संविधान में आरक्षण की शर्तों में आर्थिक आधार का उल्लेख नही है। आरक्षण समाज में समानता लाने के लिए था। इसी आधार पर 1950 में मद्रास राज्य ने राज्य मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में विभिन्न जातियों के लिए आरक्षण की घोषणा की। इसको चम्पाकम दोराईरंजन के वाद में सर्वोच्व न्यायालय में चुनौती दी। जिसे न्यायालय द्वारा 15(1) का उल्लंघन माना गया और इसे अमान्य घोषित किया गया।

न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति को दूर् करने के लिए 1951 में प्रथम संविधान संशोधन द्वारा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े अथवा अनुसूचित जाति या जनजाति के नागरिकों को प्रवेश के लिए विशेष प्रावधान हेतु संविधान में अनुच्छेद 15(4) जोड़ा गया।

93 वें संविधान संसोधन अधिनियम, 2005 के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 15(5) जोड़कर यह प्रावधान किया गया कि सामाजिक तथा शैक्षिणिक दृस्टि से पिछड़े अथवा अनुसूचित जाति या जनजाति के नागरिकों हेतु शिक्षण संस्थानों में प्रवेश संबंधित प्रावधान किया गया।
वर्तमान संविधान के अनुच्छेद 16 के भाग 4 में सामाजिक तथा शैक्षिणिक दृस्टि से पिछड़े वर्गो के लिए नियुक्तियों तथा पदों में आरक्षण के लिए राज्य को विशेष उपबंध करने को कहा गया है।

तमिलनाडु में आरक्षण:
तमिलनाडु में आरक्षण सम्पूर्ण देश से अलग है। राज्य में एससी, एसटी और ओबीसी को मिलाकर 69% आरक्षण है।
सात जजों की संविधान पीठ ने इंदिरा साहनी केस में 50% आरक्षण को तो स्वीकृति दे दी, लेकिन बालाजी केस में सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले के कारण उस पर पहले से चली आ रही 50% की अधिकतम सीमा को बनाए रखा।

कोर्ट के फैसले के बाद तमिलनाडु सरकार ने 69% आरक्षण का विधेयक तमिलनाडु विधानसभा से पारित कराया और केंद्र सरकार को मजबूर कर दिया कि संविधान संशोधन कर इस विधेयक को 9वीं अनुसूची में डाले, ताकि यह न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर हो जाए। इस वजह से संविधान में 76वां संशोधन हुआ।

पिछड़ा वर्ग OBC
पिछड़े वर्ग में कौन-कौन आता है, इसके निर्धारण के लिए 1953 में काका कालेलकर की अद्यक्षता में प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। इस वर्ग की सिफारिश लागू न हो सकी। इसके बाद 1978 में बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में एक अन्य आयोग का गठन किया गया था। इस आयोग ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आरक्षण की उच्चतम सिमा 50 प्रतिशत ( 1963 बालाजी बनाम मैसूर राज्य वाद ) निर्धारित किये जाने के मद्देनजर पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की। रिपोर्ट 1980 में प्रस्तुत की । 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने कार्यपालिकीय आदेश जारी कर पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया।
1991- नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10% आरक्षण शुरू किया।
1992- इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को सही ठहराया।

पिछड़े वर्गों में सम्पन लोगो को आरक्षण ना मिले, इसके लिए प्रावधान किया गया। क्रीमीलेयर की पहचान के लिये 1992 में न्यायमूर्ति रामनंदन प्रसाद की अद्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया। इस समिति के रिपोर्ट के आधार पर 1993 में केंद्र सरकार द्वारा कार्यालय ज्ञापन जारी कर निर्धारित किया गया। वर्तमान में लगातार 3 वर्षो तक 8 लाख वार्षिक आय वालो के पुत्र/पुत्रियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता।

पदोन्नति में आरक्षण
भारत में 1955 से पदोन्नति में आरक्षण प्रदान किया जा रहा है। 82 वें संविधान संशोधन 2000 द्वारा संविधान में लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता के मौलिक अधिकार के तहत अनुच्छेद 16 ( 4-क ) जोड़ कर राज्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण करने हेतु प्रावधान किया गया।


आर्थिक रूप से कमजोर(EWS) वर्गों के लिये
103वां संशोधन(2019) के द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई।