“अखिल भारतीय कांग्रेस” द्वारा 8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई (मुंबई) के ऐतिहासिक "ग्वालिया टैंक" में हुए बैठक में गांधी जी के ऐतिहासिक “भारत छोड़ो प्रस्ताव” को कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ संशोधनों के बाद 8 अगस्त, 1942 ई. की स्वीकार किया। और 9 अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत सम्पूर्ण भारत में हुई।
बम्बई के बैठक में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व रविशंकर शुक्ल, लक्ष्मीनारायण दास, द्वारिका प्रसाद मिश्र, कुंजबिहारी अग्निहोत्री, वाय. वी. तामस्कर के द्वारा किया गया। 9 अगस्त सन् 1942 को पूरे देश मे आन्दोलन हुऔर शाम को शाहर में एक जुलुश निकाला गया, जिसका नेतृत्व रणवीर सिंह शास्त्री ने कियाआ, जिसका प्रभाव छत्तीसगढ़ में भी पड़ा।
बम्बई अधिवेशन से वापस लौटते वक्त मलकापुर म् सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
छत्तीसगढ़ में संचालन:
"भारत छोड़ो आंदोलन" आंदोलन का संचालन छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नेताओं द्वारा किया गया।
"भारत छोड़ो आंदोलन" आंदोलन का संचालन छत्तीसगढ़ के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नेताओं द्वारा किया गया।
रायपुर - भगवती चरण शुक्ल, जयनारायण पाण्डेय, रणवीर सिंह शास्त्री, कमलनारायण शर्मा, त्रेतानाथ त्रिपाठी, रामकृष्ण ठाकुर।
बिलासपुर - चिन्तामणी ओत्तालवार, राजकिशोर शर्मा, कालीचरण, बैरिस्टर छेदिलाल, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव।
दुर्ग - रघुनंदन प्रसाद सिंगरौल, रत्नाकर झा, गणेश प्रसाद सिंगरौल, नरसिंह प्रसाद अग्रवाल।
प्रमुख घटनाएँ:
रायपुर: 9 अगस्त 1942 को रायपुर को सभी स्कूल, कॉलेज तथा बाजार बंद था। रविशंकर शुक्ल, महंत लक्ष्मीनारायण, छेदिलाल तथा डॉ. खूबचंद बघेल गिरफ्तार हो चुके थे। रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय के निकट करीब बिस हजार लोगो ने जुलूस निकाला। जयनारायण पाण्डेय, कमलनारायण शुक्ल ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
इस समय रायपुर के डिप्टी कमिश्नर आर.के. पाटिल थे।
10 अगस्त को शाम में शाहर में एक जुलुश निकाला गया, जिसका नेतृत्व रणवीर सिंह शास्त्री ने किया। गांधी चौक पहुच कर यह जुलूस सभा मे बदल गया। इस सभा का नेतृत्व त्रेतानाथ तिवारी ने किया। रणवीर सिंह शास्त्री को गांधी चौक से गिरफ्तार कर लिया गया। इस समय आर. के. पाटिल रायपुर के डिप्टी कमिश्नर थे।
रायपुर षड्यंत्र केस -
रायपुर में क्रांतिकारियों के सहयोग हेतु परसराम सोनी और बी. बी. सूर के नेतृत्व में विस्फोटक सामग्रियों का निर्माण कराया गया। इस षड्यंत्र मे अन्य सहयोगी प्रेमचंद्र वासनिक, डॉ. सुरमंगल मिस्त्री, सुधीर मुखर्जी, दशरथ चौबे, रणवीर सिंह शास्त्री, गिरिवर दामोदर, कांतिकुमार भारती।
शिवनंदन नामक मुखबिर के द्वारा पुलिस को सूचना देने की वजह से इस षड्यंत्र मे शामिल क्रांतिकारियों को 15 जुलाई 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया। और 7 वर्ष की सजा सुनाई गई। पं. रविशंकर शुक्ल के प्रयासों से इन्हें रिहा किया गया।
रायपुर में क्रांतिकारियों के सहयोग हेतु परसराम सोनी और बी. बी. सूर के नेतृत्व में विस्फोटक सामग्रियों का निर्माण कराया गया। इस षड्यंत्र मे अन्य सहयोगी प्रेमचंद्र वासनिक, डॉ. सुरमंगल मिस्त्री, सुधीर मुखर्जी, दशरथ चौबे, रणवीर सिंह शास्त्री, गिरिवर दामोदर, कांतिकुमार भारती।
शिवनंदन नामक मुखबिर के द्वारा पुलिस को सूचना देने की वजह से इस षड्यंत्र मे शामिल क्रांतिकारियों को 15 जुलाई 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया। और 7 वर्ष की सजा सुनाई गई। पं. रविशंकर शुक्ल के प्रयासों से इन्हें रिहा किया गया।
रायपुर डायनामाइट कांड -
रायपुर जेल से राजनेताओ को बाहर निकलने के लिए बिलखनारायण अग्रवाल के नेतृत्व में जेल के दीवार को डायनामाइट से उड़ाने की योजना बनाई गई। इस योजना की जानकारी पुलिस तक अविनाश संग्राम के द्वारा पहुचाई गई। जिस वजह से यह योजना असफल रही। पुलिस ने बिलखनारायण के साथ उनके सहयोगी ईश्वरीलाल, जयनारायण पाण्डेय तथा नागरदास बावरिया को गिरफ्तार करलिया गया।
रायपुर जेल से राजनेताओ को बाहर निकलने के लिए बिलखनारायण अग्रवाल के नेतृत्व में जेल के दीवार को डायनामाइट से उड़ाने की योजना बनाई गई। इस योजना की जानकारी पुलिस तक अविनाश संग्राम के द्वारा पहुचाई गई। जिस वजह से यह योजना असफल रही। पुलिस ने बिलखनारायण के साथ उनके सहयोगी ईश्वरीलाल, जयनारायण पाण्डेय तथा नागरदास बावरिया को गिरफ्तार करलिया गया।
दुर्ग -
28 अगस्त 1942 को रघुनंदन सिंगरौल ने दुर्ग जिला कचहरी में आग लगा दी। पुलिस ने रघुनंदन सिंगरौल को संदेह के आधार पर गुरफ्तार किया परंतु सबूतो के अभाव में उन्हें छोड़ दिया गया। 5 सितंबर 1942 को रघुनंदन सिंगरौल ने जसवंत सिंह के साथ मिलकर नगरपालिका भवन में आग लगा दी।
28 अगस्त 1942 को रघुनंदन सिंगरौल ने दुर्ग जिला कचहरी में आग लगा दी। पुलिस ने रघुनंदन सिंगरौल को संदेह के आधार पर गुरफ्तार किया परंतु सबूतो के अभाव में उन्हें छोड़ दिया गया। 5 सितंबर 1942 को रघुनंदन सिंगरौल ने जसवंत सिंह के साथ मिलकर नगरपालिका भवन में आग लगा दी।
म.प्र. प्रांतीय विद्यार्थी परिषद के ठा. रामकृष्ण सिंह के नेतृत्व में आंदोलन सक्रिय रहा। नागपुर के उच्च न्यायालय में ठा. रामकृष्ण नामक वुद्यार्थी के द्वारा झंडा फहराया गया जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
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