दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ राज्य का एक शहर और जिला है। दंतेवाड़ा जिला 1998 ई. में अस्तित्व में आने के पहले यह था बस्तर जिले की एक तहसील था। इस क्षेत्र को दक्षिण बस्तर के नाम से भी जाना जाता है।
इतिहास :
इतिहास :
इस क्षेत्र उल्लेख महाकाव्य रामायण में मिलता है। महाकाव्य के अनुसार राम ने अपने वनवास के दौरान यहां शरण ली थी। उन दिनों में यह क्षेत्र दंडकारण्य के रूप में जाना जाता था।
इस क्षेत्र पर 72 ईसा पूर्व से 200 ई के तक सातवाहन शासकों शासन किया। इनके बाद नल (350ई. - 760ई. ) और नागाओं (760ई. - 1324ई. ) ने शासन किया। चालुक्य का शासन 1324 ई. - 1774ई. तक रहा। चालुक्य के बाद यह क्षेत्र मराठो के अधीन आया और 1853 ई. - 1947ई. तक यह क्षेत्र ब्रिटिस के अधीन रहा।
पर्यटन :
फूलपाड़ जलप्रपात – यह जलप्रपात जिला मुख्यालय सेे लगभग 43 किमी दूर बैलाडीला के पहाड़ से निकलने वाले कुरूम नाले पर स्थित है। यहां नाले का पानी करीब 100 फीट की ऊंचाई से तीन चरणों में गिरता है।
झारलवा जलप्रपात – यह जलप्रपात जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से करीब 12 की दूरी पर स्थित है। पूर्ण पढ़ें
समलुर शिव मंदिर ( Samlur Shiva Temple ) – यह प्राचीन शिव मंदिर जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से करीब लगभग 9 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण 11 वीं शताब्दी में किया गया था। पूर्ण पढ़ें
बारसुर (Barsur - An Archaeological site) – बारसुर, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में स्थित एक गांव है। जो जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बारसूर नाग राजाओं एवं काकतीय शासकों की राजधानी रहा है। पूर्ण पढ़ें
ढोलकल गणेश (Dholkal Ganesh) – ढोलकल दंतेवाड़ा में बैलाडिला पहाड़ी में 3000 फीट ऊंचा एक सुंदर स्थान है। यहां भगवान गणेश की 3 फीट सुंदर पत्थर की मूर्ति स्थापित है, जिसका निर्माण 10 वीं और 11 वीं शताब्दी के बीच नागा वंश के शासन के दौरान किया गया था। पूर्ण पढ़़ें
मां दंतेश्वरी मंदिर ( Maa Danteshwari Mandir ) – मां दंतेश्वरी मंदिर बस्तर की सबसे सम्मानित देवी को समर्पित मंदिर, 52 शक्ति पिथों में से एक माना जाता है। माना जाता है कि देवी सती की दांत यहां गिरा था, इसलिए यह स्थान दंतेवाड़ा के नाम सेे जाना जाता है।