नेतृत्व- गैंदसिंह (फांसी 20/01/1825 )
• शासक- महिपाल देव
• उद्देश्य - अबुझमाड़ीयों की शोषण मुक्ति
• दमनकर्ता - कैप्टन पेबे
• विशेष - प्रथम शहीद - गेंद सिंह , प्रतीक धावडा पेड़ की टहनी
• उद्देश्य - अबुझमाड़ीयों की शोषण मुक्ति
• दमनकर्ता - कैप्टन पेबे
• विशेष - प्रथम शहीद - गेंद सिंह , प्रतीक धावडा पेड़ की टहनी
परलकोट विद्रोह ( 1825 ई. ) एक आदिवासी/जनजातीय विद्रोह था। यह विद्रोह जमींदार गेंद सिंह के नेतृत्व में अबूझमाड़ियों के द्वारा किया गया विद्रोह था। जिसे अंग्रेज एवं मराठो के शोषण के विरोध में प्रारम्भ किया गया था।
जब अत्याचार बढ़ने लगा को गैंदसिंह ने 24 दिसम्बर, 1824 को अबूझमाड़ में एक विशाल सभा का आयोजन किया। सभा के बाद गाँव-गाँव में धावड़ा वृक्ष की टहनी भेजकर विद्रोह के लिए तैयार रहने का सन्देश भेजा।
वृक्ष की टहनी के पीछे यह भाव था कि इस टहनी के पत्ते सूखने से पहले ही सब लोग विद्रोह स्थल पर पहुँच जायें। 4 जनवरी, 1825 को ग्राम, गुफाओं और पर्वत शृंखलाओं से निकल कर आदिवासी वीर परलकोट में एकत्र हो गये। सब अपने पारम्परिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस थे।
आदिवासी क्षेत्र में गैर-आदिवासियों के उपस्तिथि एवं उनके मनमानी से नाराज थे। इन्होंने अंग्रेज एवं मराठा अधिकारियों पर हमला बोल दिया। अंग्रेज और मराठा की संयुक्त सेना ने 10 जनवरी 1825 में परलकोट को घेरलिया, अबूझमाड़ियों के पारंपरिक हथियार आधुनिक हथियार का सामना करने में असफल रहें। नेता गैंदसिंह ( Gend Sing ) को गिरफ्तार कर 20 जनवरी 1825 को उन्हें महल के सामने फाँसी दी गई।
अन्य विद्रोह :
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