• शासक- भैरमदेव
• दमनकर्ता - मैक जार्ज
• प्रतीक- आम कि टहनी
मुरिया आदिवासी विद्रोह 1876 ई. में झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में मुरिया आदिवासियों द्वारा किया गया। यह विद्रोह शोषणमूलक नीति के विरोध में था, इसे '1876 का विरोध' भी कहा जाता है।
अन्य विद्रोह :
• दमनकर्ता - मैक जार्ज
• प्रतीक- आम कि टहनी
बस्तर के राजा भैरमदेव को ब्रिटिश शासन की तरफ से दिल्ली जाने का आदेश मिला, लेकिन मुरिया आदिवासियों ने उनका घेराव कर के उन्हें दिल्ली न जाने की प्राथना की। उनका अंदेशा था कि उनके अनुपातीथी में उन पर अत्याचार किया जायेगा। स्थिति बिगड़ते देख दीवान गोपीनाथ ने भीड़ पर गोली चलवा दी जिसमे कुछ लोग मारे गए। राजा बस्तर लौटने को विवश हो गया।
दीवान गोपीनाथ ने दमन-चक्र चलना आरम्भ कर दिया। मुरिया आदिवासियों झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में विरोध करने का निश्चय किया। आरापुर नमक स्थान पर विद्रोही इकट्ठा हुए। राजा स्वयं उन्हें शांत करने के उद्देश्य से आरापुर पंहुचा। लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया। विद्रोहियों ने राजा के सैनिको पर हमला बोल दिया। विद्रोहियों ने हथियार डाल दिया और आरापुर से पलायन कर गए।
2 मार्च 1876 ई. को मुरिया आदिवासियों झाड़ा सिरहा के नेतृत्व में राज महल का घेराव कर दिया। राजा ने ब्रिटिश अधिकारियों से मदद मांगी। डिप्टी कमिश्नर ने मैक जार्ज के नेतृत्व में सेना भेजी। मैक जार्ज को विद्रोहियों से पता चला की विद्रोहियों की लड़ाई राजा से नहीं बल्कि दीवान और मुंशी से है। 8 अप्रैल 1876 ई. में एक आम सभा में मैक जार्ज ने विरोधियो की मांगे मान ली और मुरिया विद्रोह समाप्त हुआ।
अन्य विद्रोह :