माधवराव सप्रे (19 जून 1871 - 26 अप्रैल 1926 ई. ) के जन्म दमोह जिला के पथरिया ग्राम में हुआ था। इन्हें छत्तीसगढ़ के प्रथम समाचार पत्र के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। इन्होंने मिडिल तक की पढ़ाई बिलासपुर से तथा मेट्रिक शासकीय विद्यालय रायपुर से उत्तीर्ण किया। 1899 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी ए उत्तीर्ण किया। सप्रे को तहसीलदार के रुप में शासकीय नौकरी मिली लेकिन शासकीय नौकरी की परवाह ना करते हुये देश भक्ति प्रदर्शित किया। माधवराव सप्रे समाजसेवा और राजनीतिक सक्रियता थे। इन्होंने साहित्य एवं हिन्दी पत्रकारिता में भी विशेष योगदान दिया। इनके स्मृति में छत्तीसगढ़ सरकार ने राष्ट्रीय स्तर का 'माधवराव सप्रे सम्मान ' स्थापित किया है।
पत्रकारिता :
1900 ई. में सप्रे ने छत्तीसगढ़ के प्रथम समाचार पत्र 'छत्तीसगढ़ मित्र' की स्थापना की। इस मासिक पत्रिका का पकाशन बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से किया गया। 1907 ई. में रायपुर में आयोजित तृतीय प्रांतीय परिषद में माधवराव सप्रे को 'हिंदी केसरी' नमक पत्रिका निकलने पर दायित्व सौप गया, जिसका प्रकाशन 13 अप्रैल 1907 ई. से आरंभ हुआ। 'हिंदी केसरी' लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी का रुप था। 21 अगस्त 1908 ई. में 'हिंदी केसरी' में उनके लेखो : 'देश की दुर्दशा' एवं 'बम गोले का रहस्य' - के उन्हें गिरफ्तार किया गया। वामन लाखे के सहयोग से क्षमापत्र के माध्यम से रिहा हुए। उन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई।
पत्रकारिता :
1900 ई. में सप्रे ने छत्तीसगढ़ के प्रथम समाचार पत्र 'छत्तीसगढ़ मित्र' की स्थापना की। इस मासिक पत्रिका का पकाशन बिलासपुर जिले के एक छोटे से गांव पेंड्रा से किया गया। 1907 ई. में रायपुर में आयोजित तृतीय प्रांतीय परिषद में माधवराव सप्रे को 'हिंदी केसरी' नमक पत्रिका निकलने पर दायित्व सौप गया, जिसका प्रकाशन 13 अप्रैल 1907 ई. से आरंभ हुआ। 'हिंदी केसरी' लोकमान्य तिलक के मराठी केसरी का रुप था। 21 अगस्त 1908 ई. में 'हिंदी केसरी' में उनके लेखो : 'देश की दुर्दशा' एवं 'बम गोले का रहस्य' - के उन्हें गिरफ्तार किया गया। वामन लाखे के सहयोग से क्षमापत्र के माध्यम से रिहा हुए। उन्होंने कर्मवीर के प्रकाशन में भी महती भूमिका निभाई।
देखें : छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता / समाचार पत्र का इतिहास
साहित्य :
माधवराव सप्रे की कहानी "एक टोकरी मिट्टी" ( “टोकनी भर मिट्टी” भी कहते हैं) को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है। सप्रे जी ने बाल गंगाधर तिलक के मराठी ग्रन्थ 'गीता रहस्य' के साथ-साथ विख्यात संत समर्थ रामदास के मराठी दासबोध व महाभारत की मीमांसा, दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया। 1924 ई. में हिंदी साहित्य सम्मेलन के देहरादून अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी ने 1921 ई. में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की जो आज भी चल रहे हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी ने 11 सितम्बर 1926 के कर्मवीर में लिखा था − "पिछले पच्चीस वर्षों तक पं. माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।"
साहित्य :
माधवराव सप्रे की कहानी "एक टोकरी मिट्टी" ( “टोकनी भर मिट्टी” भी कहते हैं) को हिंदी की पहली कहानी होने का श्रेय प्राप्त है। सप्रे जी ने बाल गंगाधर तिलक के मराठी ग्रन्थ 'गीता रहस्य' के साथ-साथ विख्यात संत समर्थ रामदास के मराठी दासबोध व महाभारत की मीमांसा, दत्त भार्गव, श्री राम चरित्र, एकनाथ चरित्र और आत्म विद्या जैसे मराठी ग्रंथों, पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद भी किया। 1924 ई. में हिंदी साहित्य सम्मेलन के देहरादून अधिवेशन में सभापति रहे सप्रे जी ने 1921 ई. में रायपुर में राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की और साथ ही रायपुर में ही पहले कन्या विद्यालय जानकी देवी महिला पाठशाला की भी स्थापना की जो आज भी चल रहे हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी ने 11 सितम्बर 1926 के कर्मवीर में लिखा था − "पिछले पच्चीस वर्षों तक पं. माधवराव सप्रे जी हिन्दी के एक आधार स्तम्भ, साहित्य, समाज और राजनीति की संस्थाओं के सहायक उत्पादक तथा उनमें राष्ट्रीय तेज भरने वाले, प्रदेश के गाँवों में घूम घूम कर, अपनी कलम को राष्ट्र की जरूरत और विदेशी सत्ता से जकड़े हुए गरीबों का करुण क्रंदन बना डालने वाले, धर्म में धँस कर, उसे राष्ट्रीय सेवा के लिए विवश करने वाले तथा अपने अस्तित्व को सर्वथा मिटा कर, सर्वथा नगण्य बना कर अपने आसपास के व्यक्तियों और संस्थाओं के महत्व को बढ़ाने और चिरंजीवी बनाने वाले थे।"