हल्बा विद्रोह - Halba vidroh


हल्बा विद्रोह 1774 ई. से 1777 ई.
• नेत्रित्व- अजमेर सिंह
• शासक- दरियादेव
• उद़देश्य – उत्तराधिकार हेतु
• विशेष – प्रथम विदोह

यह छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह माना जाता है। यह विद्रोह डोंगर क्षेत्र में 1774 ई. से 1777 ई. तक चला।  काकतीय शासक इस विद्रोह को रोकने में ससमर्थ रहे और वे मराठो के अधीन हो गए।

इतिहास :
इतिहासकारों के अनुसार डोंगर क्षेत्र हलबाओ का स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। डोंगर क्षेत्र को अपनी उपराजधानी बना कर  बस्तर के राजा अपने पुत्रो को यहाँ का गवर्नर नियुक्त करने लगे। 1774 ई. में जब दरियवदेव बस्तर का राजा बना तो उसने डोंगर क्षेत्र की उपेक्षा की तथा तत्कालीन गवर्नर अजमेर सिंह पर दबाव डालने लगा। डोंगर क्षेत्र में इस वर्ष अकाल और दरियवदेव ने आक्रमण कर दिया। इस समय डोंगर क्षेत्र की रक्षा के लिए कांकेर की सेना तैनात थी। दरियवदेव की हार हुई और विद्रोह को मजबूत होता देख दरियवदेव जैपुर भाग गया।

जैपुर में दरियवदेव ने अंग्रेजो, मराठो एवं जैपुर के राजा के साथ अलग-अलग संधि कर 20000 सैनिको की सेना बना कर वापस हमला किया। और जगदलपुर में विद्रोहियों को पराजित करने के बाद डोंगर पर हमला कर अजमेर सिंह को मार डाला।  इसके बाद बड़े पैमाने पर हल्बा विद्रोहियों की हत्या की जिसमे से एक नर संघार को आज भी हल्बा लोग  ताड़ - झोकनी के रूप में याद करते है।

जैपुर के राजा को सहायता के बदले कोटपाड़ परगना देना पड़ा।  विद्रोह की समाप्ति के बाद दरियवदेव ने 6 अप्रैल 1778 ई. में कोटपाड़ की संधि पर हस्ताक्षर किया, जिसके अनुसार यह क्षेत्र मराठो के अधीन आगया। भविष्य में यह क्षेत्र अंग्रेजो के अधीन हो गया।


अन्य विद्रोह :