महाराजा चक्रधर सिंह बहादुर - Raja Chakradhar Singh Bahadur



जन्म - 19 अगस्त 1905 
मृत्यु - 7 अक्टूबर 1947

महाराजा चक्रधर सिंह ( Raja Chakradhar Singh ) छत्तीसगढ़ में रायगढ रियासत के राजा एवं गोंड वंश के शासित बरगढ़ के प्रमुख थे। चक्रधर सिंह राजा भूप देव सिंह ( Raja Bhup Deo Singh) के पुत्र थे। वर्ष  1924 में अपने बड़े भाई राजा नटवर सिंह के देहान्त के बाद वे गद्दी पर बैठे। वे 1924 से 1947 तक राजगढ रियासत के शासक थे।


शिक्षा :

उनकी शिक्षा राजकुमार महाविद्यालय रायपुर से हुई। वे गायन, वादन, अभिनय एवं नर्तन के विशेषज्ञ थे। इन्होंने संगीत एवं नृत्य विधा में बहुमूल्य कृतियों की रचना की। वर्तमान छत्तीसगढ़ सरकार ( छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग  ) के द्वारा महाराजा चक्रधर सिंह के सम्मान में 'चक्रधर सम्मान' दिया जाता है।


सांस्कृतिक योगदान : 

रायगढ की इस सांस्कृतिक विरासत को सबसे मजबूत करने का काम किया यहां के राजा चक्रधर सिंह ने। चक्रधर सिंह अच्छे तबला और सितार वादक होने के साथ तांडव नृत्य में भी निपुण थे। उन्होंने कत्थक के लखनऊ और जयपुर घराने से जुड़े गुरूओं को रायगढ़ बुलाया। कत्थक की इन दोनों शैलियों के मेल से उन्होंने कत्थक की एक नई "रायगढ़ शैली" की शुरूआत की। राजा चक्रधर ने संगीत और काव्य पर बहुत से ग्रंथों की रचना की थी। 

प्रमुख रचना :
  1. नर्तक  सर्वस्व 
  2. टाळतोय  निधि
  3. तलबल  पुष्पकर 
  4. राजरत्न  मंजुस 
  5. मुराजपरन  पुष्पकर 
उर्दू भाषा पर भी उनकी पकड़ बेहतरीन थी। उन्होंने "फरहत" के उपनाम से उर्दू भाषा में गज़लें भी लिखीं। उनका जन्म गणेश चतुर्थी के दिन हुआ था। उनके पिता ने उनके जन्म की खुशी में गणेश चतुर्थी के दिन शहर में उत्सव मनाना शुरू किया था। राजा चक्रधर की याद में 1985 से गणेश चुतुर्थी के अवसर पर यहां के राजघरा ने शास्त्रीय संगीत और नृत्य महोत्सव / उत्सव के रूप में गणेश मेला (चक्रधर समारोह) शुरू कर दिया। इसमें देश के बड़े कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। बाद में साल 2001 में जिला प्रशासन ने उत्सव की जिम्मेदारी ली। यह गणेश मेला इस राज्य में एक यश त्योहार बन गया।