कांकेर ( कोरापुट - वर्त्तमान कांकेर ) जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित है। कांकेर पहले बस्तर जिले का एक हिस्सा था। लेकिन 1998 में कांकेर जिले को एक स्वतंत्र जिले के रूप में पहचान मिली।
कांकेर जिले के चारामा विकासखंड से 10000 साल पुराने शैल चित्र प्राप्त हुए है।
जनसंख्या :
2011 की जनगणना के अनुसार कांकेर जिले जनसंख्या 7,48,941 (स्त्रीः 3,75,603। पुरुषः 3,7,338) है। जिले का जनघनत्व 105 है। जिले की दशकीय वृद्धि दर 15.06% थी।
कांकेर जिले के चारामा विकासखंड से 10000 साल पुराने शैल चित्र प्राप्त हुए है।
जनसंख्या :
2011 की जनगणना के अनुसार कांकेर जिले जनसंख्या 7,48,941 (स्त्रीः 3,75,603। पुरुषः 3,7,338) है। जिले का जनघनत्व 105 है। जिले की दशकीय वृद्धि दर 15.06% थी।
इतिहास :
कांकेर राज्य पहले एक घने जंगल दंडकारण्य के क्षेत्र में आता था। मिथकों के अनुसार कांकेर भिक्षुओं का देश था। बहुत ऋषि (भिक्षुओं) कंक, लोमेश, अंगिरा और श्रृंगी यहां रहते थे। छठी शताब्दी ( ई. पू. ) से पहले यह क्षेत्र बौद्ध धर्म से प्रभावित था। कांकेर के प्राचीन इतिहास बताता है कि यह हमेशा के लिए स्वतंत्र राज्य बना रहा।
106 ई. में कांकेर राज्य सातवाहन राजवंश के अधीन था और राजा सातकर्णी थे। इन तथ्यों को चीनी यात्री व्हेनसॉन्ग द्वारा पेश किया गया है। सातकर्णी के बाद पुलुमावी, शिवश्री और शिवस्कंद राजा बने। सातवाहन के बाद कांकेर राज्य नाग, वाकाटक के नियंत्रण में था।
वाकाटक बाद कांकेर राज्य नल वंश के नियंत्रण में आ गया। इतिहासकारों के अनुसार व्याघ्रराज पहले नल शासक राजा थे। एवं राजा वरहराज दूसरे नल शासक थे जिन्होंने दंडकारण्य के पूरे क्षेत्र को जीता था।
वरदराज के बाद, भवदत्त वर्मन कांकेर राज्य का राजा बना। भवदत्त वर्मन के राज्य के दौरान वाकाटक राजा नरेन्द्र सेन ने राज्य पर हमला किया और राज्य का एक छोटा हिस्सा जीत लिया, लेकिन कुछ सालों के बाद भवदत्त वर्मन ने खोया हिस्सा वापस जित लिया और उड़ीसा, महाराष्ट्र तक अपने राज्य का विस्तार किया। भवदत्त वर्मन की मृत्यु के बाद उनका बेटा अर्थपति राजा बन गया। अर्थपति को अपने पिता से एक बड़ा राज्य मिल था लेकिन अपने पिता की तरह गुण था और वाकाटको ने राज्य का कुछ हिस्सा जीत लिया।
457 ईस्वी में स्कंद वर्मन कांकेर राज्य के राजा बने और 500 ईस्वी तक शासन किया। यह नल वंश के अंतिमज्ञात राजा है। उनकी मृत्यु के बाद कांकेर राज्य को बहुत के हमलों का सामना करना पड़ा और कई भागों में विभाजित होगया।
नल राजाओं के बाद इस राज्य को प्रशिद्ध चालुक्य राजा पुलकेशिन ने जीत लिया, पुलकेशिन ने उड़ीसा के कुछ हिस्सो को भी जीता। उसके राज्य के दौरान कांकेर राज्य में मंदिरों का एक बहुत निर्माण किया गया।
पुलकेशिन द्वितीय के बाद, विक्रमादित्य, विनयादित्य, विक्रमादित्य द्वितीय कीर्तिवर्मन द्वितीय ने इस क्षेत्र में 788 ईस्वी तक शासन किया। चालुक्य राजाओं के बाद इस क्षेत्र पर नल ,नाग एवं कलचुरियो का शासन 1100 ईस्वी तक था।
सोम वंश का शासन कांकेर राज्य में 1125 ई. से 1344 ई. तक था। इस क्षेत्र में कंदरा, चंद्रा राजवंशो का भी शासन था। राजवंशो के बाद यह क्षेत्र मराठों और अंग्रेजों के नियंत्रण में आया।
प्रागैतिहासिक स्थल
गोटीटोला:
यहां से शैलचित्रों की श्रृंखला मिली है। जिसमे मानव आकृतियां, तीर व धनुष के साथ शिकार करता हुआ मानव। सभी चित्र लाल चटक गेरुआ रंग, काले पिले रंग के मिश्रण से चित्रित है।
खैरखेड़ा:
चारामा विकास खंड के ग्राम खैरखेड़ा की पर आदिम अभिव्यक्ति का शैलचित्र प्राप्त हुए है। और पंजो के चित्र मिले है।
चंदेली:
यहां से सांकेतिक लिपि, छोटे-छोटे कद के मानव आकृति तथा उड़ान तस्तरी के शैलचित्र प्राप्त हुए है। इन छोटे-छोटे कद वाले मानव को स्थानीय लोग रुहेडा कहते है।
इनके अलावा उदकुडा, गङागौरी, मोहपुर, कुलगाँव, कुकरदाह, मनकेसरी तथा घोटिया से भी प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
मेला
लिंगो देव (लिंगो बाबा) मेला : बस्तर
संभाग के कांकेर जिला अंतर्गत ग्राम सेमरगांव में लिंगो देव (लिंगो बाबा) मेला का आयोजन इस वर्ष किया जाता है। तीन साल में एक बार आयोजित होने वाले इस मेला में कांकेर, कोण्डागांव और नारायणपुर जिला के देवीदेवताओं को लेकर भारी संख्या में ग्रामीण पहुंचते हैं।
सेमरगांव लिंगो देव को आदिवासी अपने शक्तिपीठ के रूप में पूजते हैं। राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्र में आंगा देव में प्रमुख लिंगो देव की मान्यता है।