जन्म - १४७९ ई.
मृत्यु - १५३१ ई.
पिता - श्रीलक्ष्मण भट्ट
माता - इलम्मागारू
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी का जन्म विक्रम संवत् १५३५, वैशाख कृष्ण एकादशी को उस समय के दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्राम में हुआ था। यह स्थान वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर के निकट चम्पारण्य है। इनका विवाह महालक्ष्मी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र थे - गोपीनाथ (१५११ ई.) एवं विट्ठलनाथ (१५१६ ई.) थे।
भारत सरकार ने सन १९७७ ई. में महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था।
वल्लभाचार्य जी ने शुद्धाद्वैत दर्शन प्रतिपादित है वे पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक हैं। यह एक वैष्णव सम्प्रदाय है जो भगवन श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करता है। शुद्धाद्वैत दर्शन अद्वैतवाद से भिन्न है।
रचना :
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने सोलह ग्रंथो की रचना की हैं, जिन्हें ‘षोडश ग्रन्थ’ के नाम से जाना जाता है –
१. यमुनाष्टक
२. बालबोध
३. सिद्धान्त मुक्तावली
४. पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद
५. सिद्धान्तरहस्य
६. नवरत्नस्तोत्र
७. अन्तःकरणप्रबोध
८. विवेकधैर्याश्रय
९. श्रीकृष्णाश्रय
१०. चतुःश्लोकी
११. भक्तिवर्धिनी
१२. जलभेद
१३. पञ्चपद्यानि
१४. संन्यासनिर्णय
१५. निरोधलक्षण
१६. सेवाफल
शुद्धाद्वैत का प्रतिपादक प्रधान दार्शनिक ग्रन्थ है - अणुभाष्य [ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा]।
शिष्य:
श्री वल्लभाचार्य जी के चौरासी शिष्यों के अलावा अनगिनत भक्त, सेवक और अनुयायी थे। इन्होने “अष्टछाप” कवि के नाम का एक समूह स्थापित किया था। इस समूह श्री वल्लभाचार्य जी के अपने स्वयं के चार शिष्य - नन्ददास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी तथा चतुर्भुजदास थे जो सभी श्रेष्ठ कवि तथा कीर्तनकार भी थे एवं उनके पुत्र श्रीविट्ठलनाथजी (गुसाईंजी) के चार प्रमुख शिष्य थे -
१. भक्त सूरदास
२. कृष्णदास
३. परमानन्द दास
४. कुम्भनदास
मृत्यु - १५३१ ई.
पिता - श्रीलक्ष्मण भट्ट
माता - इलम्मागारू
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी का जन्म विक्रम संवत् १५३५, वैशाख कृष्ण एकादशी को उस समय के दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्राम में हुआ था। यह स्थान वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर के निकट चम्पारण्य है। इनका विवाह महालक्ष्मी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र थे - गोपीनाथ (१५११ ई.) एवं विट्ठलनाथ (१५१६ ई.) थे।
भारत सरकार ने सन १९७७ ई. में महाप्रभु वल्लभाचार्य के सम्मान में एक रुपये मूल्य का एक डाक टिकट जारी किया था।
वल्लभाचार्य जी ने शुद्धाद्वैत दर्शन प्रतिपादित है वे पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक हैं। यह एक वैष्णव सम्प्रदाय है जो भगवन श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करता है। शुद्धाद्वैत दर्शन अद्वैतवाद से भिन्न है।
रचना :
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने सोलह ग्रंथो की रचना की हैं, जिन्हें ‘षोडश ग्रन्थ’ के नाम से जाना जाता है –
१. यमुनाष्टक
२. बालबोध
३. सिद्धान्त मुक्तावली
४. पुष्टिप्रवाहमर्यादाभेद
५. सिद्धान्तरहस्य
६. नवरत्नस्तोत्र
७. अन्तःकरणप्रबोध
८. विवेकधैर्याश्रय
९. श्रीकृष्णाश्रय
१०. चतुःश्लोकी
११. भक्तिवर्धिनी
१२. जलभेद
१३. पञ्चपद्यानि
१४. संन्यासनिर्णय
१५. निरोधलक्षण
१६. सेवाफल
शुद्धाद्वैत का प्रतिपादक प्रधान दार्शनिक ग्रन्थ है - अणुभाष्य [ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा]।
शिष्य:
श्री वल्लभाचार्य जी के चौरासी शिष्यों के अलावा अनगिनत भक्त, सेवक और अनुयायी थे। इन्होने “अष्टछाप” कवि के नाम का एक समूह स्थापित किया था। इस समूह श्री वल्लभाचार्य जी के अपने स्वयं के चार शिष्य - नन्ददास, छीतस्वामी, गोविन्दस्वामी तथा चतुर्भुजदास थे जो सभी श्रेष्ठ कवि तथा कीर्तनकार भी थे एवं उनके पुत्र श्रीविट्ठलनाथजी (गुसाईंजी) के चार प्रमुख शिष्य थे -
१. भक्त सूरदास
२. कृष्णदास
३. परमानन्द दास
४. कुम्भनदास