रतनपुर छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर जिले का एक नगर पंचायत है। यह नगर कल्चुरी एवं मराठा शासन के समय छत्तीसगढ़ की राजधानी थी।
>> छत्तीसगढ़ में कल्चुरी शासन
इतिहास :
रतनपुर राज की स्थापना रतनराज / रत्नदेव प्रथम ने करवाया था। रतनपुर राज और रायपुर राज क्रमशः शिवनाथ के उत्तर तथा दक्षिण में स्थित थे। प्रत्येक राज में स्पष्ट और निश्चित रूप अठारह-अठारह ही गढ़ होते थे। रतनराज कमलराज के पुत्र एवं कलिंगराज के पोते थे छत्तीसगढ़ के क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी जिस वजह से उन्हें कल्चुरी शाखा का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
11 वी ई. में इसे छत्तीसगढ़ की राजधानी बना दी गई।वर्ष 1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गाँव में शिकार के लिए आये थे, जहा रात्रि विश्राम उन्होंने एक वटवृक्ष के नीचे किया। अर्ध रात्रि में जब राजा की आंखे खुली, तब उन्होंने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा। यह देखकर चमत्कृत हो गए की वहाँ आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तथा 1050ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया।
>> तुम्माण का शिव मंदिर।
वर्ष 1407 में,रतनपुर राज दो भागों में विभाजित होगया। और दूसरा भाग रायपुर राज के अधीन आगया ।
यह 18 वीं सदी तक हैहयवंशी राज्य की राजधानी के रूप में जारी रखा, यह क्षेत्र मराठा के नियंत्रण में (1741) मराठो ने भी रायपुर को ही राजधानी बनाये रखा। बाद में अंग्रेजों के नियंत्रण में (1818 ई. ) आया।ब्रिटिशअधीक्षक कैप्टन पी. वन्स एगेन्यु ( 1818 - 1825 ) ने राजधानी ( अधीक्षक का मुख्यालय ) रतनपुर से रायपुर स्थानांतरित कर दिया।
महामाया मंदिर
काल-भैरव मंदिर
लखनी देवी मंदिर
>> छत्तीसगढ़ में कल्चुरी शासन
इतिहास :
रतनपुर राज की स्थापना रतनराज / रत्नदेव प्रथम ने करवाया था। रतनपुर राज और रायपुर राज क्रमशः शिवनाथ के उत्तर तथा दक्षिण में स्थित थे। प्रत्येक राज में स्पष्ट और निश्चित रूप अठारह-अठारह ही गढ़ होते थे। रतनराज कमलराज के पुत्र एवं कलिंगराज के पोते थे छत्तीसगढ़ के क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी जिस वजह से उन्हें कल्चुरी शाखा का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
11 वी ई. में इसे छत्तीसगढ़ की राजधानी बना दी गई।वर्ष 1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गाँव में शिकार के लिए आये थे, जहा रात्रि विश्राम उन्होंने एक वटवृक्ष के नीचे किया। अर्ध रात्रि में जब राजा की आंखे खुली, तब उन्होंने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा। यह देखकर चमत्कृत हो गए की वहाँ आदिशक्ति श्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है। इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे। सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तथा 1050ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया।
>> तुम्माण का शिव मंदिर।
वर्ष 1407 में,रतनपुर राज दो भागों में विभाजित होगया। और दूसरा भाग रायपुर राज के अधीन आगया ।
यह 18 वीं सदी तक हैहयवंशी राज्य की राजधानी के रूप में जारी रखा, यह क्षेत्र मराठा के नियंत्रण में (1741) मराठो ने भी रायपुर को ही राजधानी बनाये रखा। बाद में अंग्रेजों के नियंत्रण में (1818 ई. ) आया।ब्रिटिशअधीक्षक कैप्टन पी. वन्स एगेन्यु ( 1818 - 1825 ) ने राजधानी ( अधीक्षक का मुख्यालय ) रतनपुर से रायपुर स्थानांतरित कर दिया।
दर्शनीय स्थल
रतनपुर किला(गज किला): इस किले का निर्माण 10वीं से 12वीं सदी के बीच कल्चुरी राजाओं ने कराया था। वर्तमान में यह किला जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है।
किले में कई प्राचीन मूर्तियों के साथ ही मंदिरे भी है। यहां सबसे प्राचीन मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर, जगन्नाथ मंदिर है। यहां कल्चुरी कालीन मैथून मूर्तियां, अप्सरा, गज, रावण का अपने सिर को काटकर शिव में अर्पित करते हुए प्रतिमा है। गोपालराय की एक विशाल प्रतिमा अब भी है। जिसका धड़ यहां पर नहीं है।महामाया मंदिर
काल-भैरव मंदिर
लखनी देवी मंदिर
खो-खो बावली ( Kho Kho Bawali )
लखनी माता मंदिर के कुछ ही दुरी में स्थित जुनाशहर में खो-खो बावली स्थित है। यह एक कुआँ सुरंग है, जिसमे तीन रास्ते बनाए गए हैं, जिसमे से एक बादल महल, दूसरा बिलासपुर तथा तीसरा बिलासपुर के श्याम टाकीज तक जाती हैं।
वृद्धेश्वर नाथ मंदिर (बूढ़ा महादेव)
श्री गिरिजाबंध हनुमान मंदिर
रामटेकरी मंदिर
खूंटाघाट जलाशय
सिद्धि विनायक मंदिर