जन्म स्थान - सोनाखान( बलौदाबाजार जिला )
पिता - राम राय ( सोनाखान के जमींदार )
वीर नारायण सिंह सोनाखान के जमींदार बिंझवार थे। इन्होंने 35 वर्ष की उम्र में, वर्ष 1830 को पिता की मृत्यु के बाद जमींदारी का कार्यभार सम्हाला।
पिता - राम राय ( सोनाखान के जमींदार )
वीर नारायण सिंह सोनाखान के जमींदार बिंझवार थे। इन्होंने 35 वर्ष की उम्र में, वर्ष 1830 को पिता की मृत्यु के बाद जमींदारी का कार्यभार सम्हाला।
सोनाखान विद्रोह (Sonakhan Vidroh):
वर्ष 1856 ई. में सोनाखान में पड़े अकाल के दौरान लोगो की मदत करने के लिए वीर नारायण सिंह ने माखन बनिया नमक व्यपारी के गोदाम का अनाज लोगो में बांट दिया। व्यपारी की शिकायत पर नारायण सिंह को जेल में डाल दिया गया।
जेल से भाग कर नारायण सिंह 1857 के विद्रोह में शामिल होगये। जेल से भागने के बाद वे सोनाखान पहुँचे और 500 सैनिको की एक सेना बनाई। इस समय डिप्टी कमिश्नर स्मिथ थे।
जेल से भाग कर नारायण सिंह 1857 के विद्रोह में शामिल होगये। जेल से भागने के बाद वे सोनाखान पहुँचे और 500 सैनिको की एक सेना बनाई। इस समय डिप्टी कमिश्नर स्मिथ थे।
स्मिथ ने नारायण सिंह के खानदानी महाराज साय से सहायता ली। उन्होने अन्ग्रेजी हुकुमत की नीव हिला दिया था। नारायण सिंह के घोड़े का नाम "कबरा" था, जिसपर सवार हो कर उन्होने अंग्रेजो से लोहा लिया। 2 दिसंबर 1857 को कटंगी की फ़ौज स्मिथ से जा मिली। स्मिथ की सेना ने पहाड़ को चारो तरफ से घेर लिया। अंत में नारायण सिंह को गिरफ्तार कर लिए गये।
10 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह को "जय स्तम्भ चौक" रायपुर में फांसी दिया गया। इन्हे छत्तीसगढ़ का प्रथम शहीद कहा जाता है।
वर्तमान छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा इनके सम्मान में वीर नारायण सिंह सम्मान प्रदान किया जाता है।
पोस्टल स्टाम्प : शहीद वीर नारायण सिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी 130वीं बरसी पर 1987 में सरकार ने 60 पैसे का स्टाम्प जारी किया, जिसमें वीर नारायण सिंह को तोप के आगे बंधा दिखाया गया।
इनके नाम है देश का दूसरा सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम रायपुर क्रिकेट संघ ने शहीद वीर नारायण सिंह अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण साल 2008 में करवाया। यह स्टेडियम कोलकाता के ईडन गार्डन के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा स्टेडियम है। इसमें एक बार में 65,000 दर्शक मैच का लुत्फ ले सकते हैं।
फाँसी कहाँ दी गयी थी ?
9 दिसंबर 1857 को लिखें पत्र में अंग्रेज अफसरों ने वीर नारायण सिंह को 10 दिसंबर को फांसी देने का जिक्र मिलता है। उन्हें फांसी सेंट्रल जेल के बाहर दी गई थी। source : ETV
व्यक्तित्व :