1904 में ही आधिकारिक तौर पर विभाजन का प्रस्ताव पारित कर दिया गया था। 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की गई, जो 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ। बंगाल विभाजन के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण का प्रचार इस क्षेत्र (मध्यप्रान्त - छत्तीसगढ़ ) में ताराचंद्र नामक युवक एवं उसके सांथियो द्वारा किया गया।
बंगाल विभाजन ने 1905 में राष्ट्रीय जागरण का काम किया। सम्पूर्ण देश में स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन की सुरुवात हो गई। 1906 में हुए स्वदेशी के प्रचार ने भी लोगो में जागृति उत्पन्न की।
बिलासपुर जिले में स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व ताराचंद्र ने किया। जिन्हें प्रथम कार्यकर्ता होने का श्रेय है। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में वामनराव लाखे एवं माधवराव सप्रे ने स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन का नेतृत्व किया।
स्वादेशी प्रस्ताव
कांग्रेस के 1905 के बनारस अधिवेशन में खापर्डे ने स्वदेशी प्रस्ताव रखा। इस अधिवेशन में पं. वामनराव लाखे, पं. राविशंकर, पं. रामगोपाल तिवारी, पं. बद्री प्रसाद पुजारी, पं. रामराव चिचोलकर, माधवराव सप्रे एवं गजाधर साव स्वंम सेवक के रूप में उपस्थित थे।
7 अगस्त 1905 को कोलकाता के 'टाउन हाल' में 'स्वदेशी आंदोलन' की घोषणा की गई तथा 'बहिष्कार प्रस्ताव' पास किया गया।कांग्रेस के 1905 के बनारस अधिवेशन में खापर्डे ने स्वदेशी प्रस्ताव रखा। इस अधिवेशन में पं. वामनराव लाखे, पं. राविशंकर, पं. रामगोपाल तिवारी, पं. बद्री प्रसाद पुजारी, पं. रामराव चिचोलकर, माधवराव सप्रे एवं गजाधर साव स्वंम सेवक के रूप में उपस्थित थे।
स्वदेशी आंदोलन
इस प्रस्ताव के पश्चात राष्ट्रवादी नेताओं ने बंगाल के विभिन्न भागों का दौरा किया तथा लोगों से मैनचेस्टर के कपड़ों और लिवरपूल के बने नमक का बहिष्कार करने का आग्रह किया। जल्द ही यह विरोध प्रदर्शन भारत के अन्य भागों में भी फैल गया। बंबई में इस आंदोलन का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक ने किया जबकि पंजाब में लाल लाजपत राय एवं अजीत सिंह ने वहीं दिल्ली में सैय्यद हैदर रजा एवं मद्रास में चिदम्बरम पिल्लई ने आंदोलन का नेतृत्व प्रदान किया।
नोट:- स्वदेशी आंदोलन अपने तात्कालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा क्योंकि इससे बंगाल विभाजन नहीं रुका परंतु इस आंदोलन से दूरगामी लाभ मिले। इस आंदोलन की वजह से ही भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिला तथा विदेशी वस्तुओं के आयात में कमी आई। ब्रिटिश सरकार ने जब आंदोलन का दमन करना चाहा तो भारत में उग्र राष्ट्रीयता की भावना का उदय हुआ।
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