राष्ट्रीय झण्डा सत्याग्रह - 1923 : छत्तीसगढ़ में प्रभाव


सन् 1923 में हुआ झण्डा सत्याग्रह, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान का एक शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था जिसमें लोग राष्ट्रीय झण्डा फहराने के अपने अधिकार के तहत जगह-जगह झण्डे फहरा रहे थे। यह आन्दोलन का मुख्य केंद्र नागपुर था। परन्तु इसका प्रभाव सम्पूर्ण देश के साथ तत्कालीन मध्यप्रान्त बरार में भी हुआ।

सत्याग्रह की सुरुवात:
कांग्रेस ने चर्खा युक्त तिरंगे को सम्पूर्ण देश में प्रतीक के रूप में महत्व देना आरम्भ किया। जबलपुर के टाउन हॉल में मार्च 1923 को तिरंगा फहराया गया। परंतु अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने झण्डा उतरवा कर कुचलवा दिया। जिसका विरोध कांग्रेसियों ने किया। और इस घटना से उत्तेजित हो कर झंडा सत्याग्रह की सुरुवात कर दी गई। 11 मार्च 1923 को मध्य प्रान्त के जबलपुर में तथा 31 मार्च 1923 को झण्डा सत्याग्रह के द्वितीय चरण में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पंडित सुन्दरलाल शर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान तथा नाथूराम मोदी आदि नेताओ ने रैली निकाली। इन्हें गिरप्तार कर लिया गया। पंडित सुन्दरलाल शर्मा को 6 महीने की सजा हुई। जमुनालाल बजाज, नीलकंठ देशमुख तथा महात्मा भगवानदीन ने आंदोलन का नेतृत्व किया। इनकी गिरफ्तारी के बाद वल्लभ भाई पटेल ने आंदोलन का नेतृत्व किया।
नागपुर में जुलाई, 1923 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की सभा में झंडा सत्याग्रह को समर्थन देने के लिए प्रस्ताव पारित किया।


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