भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ के कबीरधाम जिले में चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना भगवान शिव को समर्पित हिंदू मंदिर है जिसे भोरमदेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण 1089 ई. में फ़णीनागवंशी शासक गोपालदेव ने कराया था। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। इस मंदिर के ऊपरी भाग का शिखर नहीं है। इस मंदिर की बनावट खजुराहो तथा कोणार्क के मंदिर के समान है। जिसके कारण लोग इस मंदिर को छत्तीसगढ का खजुराहो भी कहते हैं।
भोरमदेव के पास 1 कि.मी. में एक और खूबसूरत ऐतिहासिक स्मारक है, जिसे "मड़वा महल" कहते है। इसे दूल्हादेव भी कहते है। यह नागवंशी शासक और हैहयवंशी रानी के शादी के स्मारक के रूप में जाना जाता है। इसका निर्माण 1349 ई. में फ़णीनागवंशी शासक रामचन्द्रदेव ने कराया था। मड़वा महल में फ़णीनागवंशी शासको की वंशावली चिन्हित की गई है।
कला शैली:
मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फूट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनो प्रवेश द्वारो से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौडाई 40 फुट है। मंदप की छत को 16 खंभो ने संभाल रखा है। मंडप में लक्ष्मी, विश्नु एवं गरूड की मुर्ति रखी है तथा भगवान के ध्यान में बैठे हुए एक राजपुरूष की मुर्ति भी रखी हुई है। मंदिर के गर्भगृह में एक काले पत्थर से बना हुआ शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मुर्ति है साथ ही नृत्य करते हुए गणेश जी की मुर्ति तथा ध्यानमग्न अवस्था में राजपुरूष एवं उपासना करते हुए एक स्त्री पुरूष की मुर्ति भी है।
मंदिर के चारो ओर बाहरी दीवारो पर विश्नु, शिव चामुंडा तथा गणेश आदि की मुर्तियां लगी है। इसके साथ ही लक्ष्मी विश्नु एवं वामन अवतार की मुर्ति भी दीवार पर लगी हुई है। देवी सरस्वती की मुर्ति तथा शिव की अर्धनारिश्वर की मुर्ति भी यहां लगी हुई है। बाहरी दीवारों पर अलग "कामसूत्र" आसन के ५४ कामुक मूर्तियां लगी हुई है।
दुर्लभ मछली :
2021 में भोरमदेव के तालाब में मछुआरों को सकरमाउथ कैट फिश मिला है। ये विलुप्त प्रजाति है।